Dharmendra First Movie Song

Dharmendra first movie sad song story: जिंदगी में कई बार ऐसे लम्हात आते हैं जब आप एकदम तन्हा छूट जाते हैं। मज़े की बात यह है कि  इन ग़मगीन  दिनों में आपको अपनी तन्हाई अच्छी लगने लगती है। लगता है जैसे आपको अपनी तन्हाई से मोहब्बत हो गई हो। दिल टूटने का फर्क पड़ा तो है लेकिन दिल अपने टूटे जाने का एहसास, तनहाई का सहारा लेकर दूर करने की कोशिश करता है। 

ऐसी सिचुएशन पुरानी फिल्मों में अक्सर आया करती थीं और उन परिस्थितियों के लिए बहुत ही खूबसूरत और संवेदनशील गीत, ग़ज़लें लिखी गयीं हैं। उनकी धुन और संगीत और गायकों की अदायगी ने इन नग़मों को लाफ़नी बना दिया।  ऐसा ही गीत है ‘मुझको इस रात की तनहाई में आवाज ना दो’ (Dharmendra First Movie Sad Song)। यक़ीन मानिए यह कोई मामूली गीत नहीं है इसको सुनकर आपको ख़ुद इस बात का एहसास करेंगे। 

1960 में मिले हिन्दी फ़िल्म जगत को दो अनमोल तोहफ़े

सन 1960 में हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को एक बहुत बड़ा सितारा मिलने वाला था। उस वर्ष एक फ़िल्म आयी ‘दिल भी तेरा हम भी तेरे’। कंवर कला मंदिर के लिए बिहारी मसंद द्वारा निर्मित, इस फिल्म का निर्देशन अर्जुन हिंगोरानी द्वारा किया गया। यह फ़िल्म कोई बहुत बड़ा जादू या कमाल तो शायद नहीं कर पाई लेकिन इसने फ़िल्मी इतिहास को दो बेशक़ीमती रत्न दिये। एक था आने वाले युगों तक दिलों पर राज करने वाला एक्टर और दूसरा था एक अमूल्य हिन्दी गीत। 

धर्मेंद्र की पहली फ़िल्म ‘दिल भी तेरा हम भी तेरे’

Dharmendra First Movie Sad Song
Dharmendra-Kumkum-in-Dil-bhi-Tera-Hum-bhi-tere

‘दिल भी तेरा हम भी तेरे’ धर्मेंद्र की पहली फ़िल्म के रूप में जानी जाती है। फिल्म में बलराज साहनी, धर्मेंद्र और कुम कुम हैं। इस फ़िल्म में धर्मेंद्र ने एक बॉक्सर का रोल अदा करा था। बलराज साहनी और कुम कुम जैसे दिगाजों के सामने भी धर्मेंद्र ने ना सिर्फ़ अपनी उपस्थिति दर्ज करवायी वह दर्शकों को ख़ूब भाए। इस फ़िल्म को लोगों ने सराहा और इसका संगीत भी पसंद किया। 

एक गीत ने धर्मेंद्र को पहचान दिलाने में बहुत मदद की – Dharmendra First Movie Sad Song

‘दिल भी तेरा हम भी तेरे’ यूँ तो धर्मेंद्र की पहली फ़िल्म थी मगर उनकी अदाकारी फ़ौरन सुर्ख़ियों में आ गई। बलराज साहनी जैसे मंझे हुए कलाकार के सामने टिक पाना और दर्शकों में पहचान बनाना कोई आसान काम नहीं था। इसमें कोई दो राय नहीं कि धर्मेंद्र की ज़बदस्य पर्सनालिटी, रंग रूप एक बॉक्सर के रोल में बहुत जंचा। लें धर्मेंद्र पहली फ़िल्म से एक संवेदनशील एक्टर के रूप में जाने जाने लगे। इस पहचान दिलाने में एक गीत का बहुत बड़ा योगदान रहा है। यह एक दुख भरा नग़मा था ‘मुझ को इस रात की तनहाई में आवाज़ ना दो’।

गीत में एक अलग बात है

यूँ तो हिन्दी फ़िल्मों में तमाम दर्दभरे गीत होंगे लेकिन इस गीत में कुछ और ही बात थी। यह निसंकोच ही संगीतकार जोड़ी कल्याणजी आनंदजी के बेहतरीन गीतों में से एक है। शमीम जयपुरी ने इस गीत को क़माल का लिखा है। उनकी लेखनी सदा ही सरल मगर दिल को छू  जाने वाली रही है। इस गीत में भी उन्होंने अपने बेजोड़ हुनर से बड़े कम शब्दों में गहरी बात बोल डाली हैं। शमीम ने फ़िल्मों में कम गीत लिखें हैं लेकिन सारे ही दिल की गहराइयों तक पहुँच जाने वाले। 

‘मुझ को इस रात की तनहाई में आवाज़ न दो
आवाज़ न दो आवाज़ न दो
जिसकी आवाज़ रुला दे मुझे वो साज़ न दो
वो साज़ न दो
आवाज़ न दो
रौशनी हो न सकी लाख जलाया मेने
तुझको भूला ही नहीं लाख भुलाया मेने
मैं परेशां हूँ मुझे और परेशां न करो
आवाज़ न दो
किस कदर जल्द किया मुझसे कनारा तुमने
कोई भटकेगा अकेला ये न सोचा तुमने
छुप गए हो तो कभी याद ही आया न करो
आवाज़ न दो
मुझ को इस रात की तनहाई में आवाज़ न दो
आवाज़ न दो आवाज़ न दो
जिसकी आवाज़ रुला दे मुझे वो साज़ न दो
वो साज़ न दो
आवाज़ न दो’

(फ़िल्म : ‘दिल भी तेरा हम भी तेरे’ का गीत-
Dharmendra First Movie Sad Song )

गायक मुकेश ने इस गीत में दर्द को सम्मोहक बना दिया 

इस गीत को अमर बनाने में मुकेश ने एक एहम हिसा निभाया है।यह मुकेश की ही आवाज़ थी जो उदासी को भी आनन्दमय बना सकती थी, और इस गीत में ठीक ऐसा ही हुआ है। हालाँकि इस गीत को लता मैगेशकर ने भी बहुत उम्दा गया है मगर, मुकेश दर्द के मामले में सबसे आगे थे। आप गीत को ख़ुद ही सुन लीजिए और बार बार सुनने के लिए शर्तिया मजबूर हो जाएँगे। 

आज हिन्दी फ़िल्मों में गीतों का घटता महत्व

हिंदी फिल्मों के गीत संगीत ने उसे एक अलग पहचान दिलाई थी। अफसोस की बात है कि नई फिल्मों में गीतों की क्वालिटी में बहुत गिरावट आयी है, ख़ासकर लिरिक्स में । शायद हिंदी फिल्म में जो गीतों के माध्यम से कहानी को आगे बढ़ाने और दर्शाने का तरीक़ा था वह उतना लोकप्रिय नहीं रहा। आजकल फिल्मों में ज्यादातर चालू गाने ही सुनाई देते हैं। इक्के दुक्के दुख भरे गीत भी फिट करे जाते हैं लेकिन ना तो उनके वैसे लिरिक्स हैं ना गायक ना संगीत। जहां तक गायकों की बात की ही जाए उनकी आवाज में वह संवेदनशीलता और दर्द नहीं है जो पुराने गायकों में हुआ करता था। 

काश आज भी हम तन्हाई और ग़म को गुनगुना कर हल्का कर लेते

दर्द और उदासी से हम बचते दर्द और उदासी से आज की पीढ़ी संभवत: बचती है, उसे डिस्कस नहीं करना चाहती। उदासी भी एक महत्वपूर्ण भावना है, उसे उजागर ना करने से ही आज हम डिप्रेशन और अकेलापन के शिकार हैं। आज के दौर में ‘मुझ को इस रात की तनहाई में आवाज़ न दो’ जैसे गीत होते तो शायद हम तन्हाई और ग़म को भी गुनगुना कर हल्का कर लेते। ख़ैर वक्त वक्त की बात है ना जाने कब अच्छे लिरिक्स अच्छे संगीत और अच्छे गायक का मौसम फिर लौट आए, फिर लौट आए कोई नया धर्मेंद्र और दर्शक कह उठे दिल भी मेरा हम भी तेरे। 

इस गीत के अलावा भी फ़िल्म में कई और मनमोहक गीत हैं। जाते जाते एक और गीत का आनंद लीजिए।

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