Guru Dutt's unfinished film

सार (Synopsis)
Mysterious Death of Gurudutt: महान फ़िल्म निर्माता, निर्देशक और अभिनेता गुरुदत्त के अचानक देहांत के बाद उनकी एक अधूरी फ़िल्म अधर में लटक गयी। वह फ़िल्म पूरी हो इच्छा तो पूरी फ़िल्म इंडस्ट्री की थी मगर मशहूर लेखक अबरार अलवी के अलावा कोई सही माइने में सामने नहीं आया। फिर एक फ़िल्मी सितारे ने फ़िल्म पूरी करने में करी दिलोजान से कोशिश। इस अभिनेता ने किस कारण से इस फ़िल्म को पूरा करने में रूचि दिखाई और यह प्रसिद्ध अभिनेता कौन था, इस लेख को पढ़ कर जानकारी लीजिए


बात है सन 1958 की।  उस वर्ष फ़िल्मफ़ेयर मैगज़ीन और यूनाइटेड प्रोड्यूसर्स गिल्ड ने एक टैलेंट कॉन्टेस्ट का आयोजन किया।  देशभर से इस अनोखे कॉन्टेस्ट में अभिनेताओं और मॉडल्स ने भाग लिया ने भाग लिया। इस कॉंटेस्ट के  जज बनाए गए महान डिरेक्टर विमल रॉय और उस ज़माने दिग्गज और सदा जिनीयस खलाए जाने वाले निर्देशक अभिनेता  गुरुदत्त साहब। 

इस टैलेंट कॉन्टेस्ट में भाग लेने लुधियाना से एक 25 साल का शर्मीला नौजवान भी आया था। देखने में यह लड़का बड़ा स्मार्ट था। डील डॉल से आकर्षक हैंडसम गबरू इस पंजाबी मुंडे  को जो भी देखता उसके व्यक्तित्व से प्रभावित होता और फ़िदा हो जाता। क्यूँकि यह नौजवान पंजाब के एक छोटे से गांव से आया था वह बम्बई की चकाचौंद और फ़िल्मी माहौल देखकर थोड़ा सहम गया, घबराया और नर्वस सा हो गया था।

जब गुरुदत्त की निगाहें उस शर्मीले नौजवान पर पड़ीं

Dharmendra with Guru Dutt How an actor repaid favour after mysterious death of Gurudutt: किस अभिनेता ने चुकाया गुरुदत्त के देहांत के बाद उनका उपकार
कैसे जीनीयस गुरुदत्त की मुलाक़ात एक भविष्य के सुपरस्टार से हुई

यकयक गुरुदत्त की निगाहें  भी उस नौजवान पर पड़ी और फिर टिक ही रह गयीं। जब गुरुदत्त ने उस नौजवान घबराया हुआ देखा तो उसके पास पहुँच गए। उससे बातचीत कर के उसका हौसला बढ़ाने लगे।  इस बातचीत में  गुरुदत्त ने उसे एक्टिंग, सिनेमा पर कुछ ख़ास टिप्स दी।  यह नौजवान गुरुदत्त के प्रोत्साहन का नतीजा ये हुआ कि वो नौजवान प्रेरित  होकर अच्छी परफॉर्मेंस देने के लिए मचल बैठा। और हुआ भी कुछ ऐसा। उसने ज़बरदस्त परफॉर्म किया और वो टैलेंट कॉन्टेस्ट जीत गया। 

बिमल रॉय ने उस अभिनेता को फ़िल्म के लिए किया साइन 

कॉंटेस्ट में जीतने के तुरंत बाद बिमल रॉय ने उस लड़के को अपनी फ़िल्म के लिए साइन भी कर लिया। लेकिन वो नौजवान गुरुदत्त का एहसानमंद हो गया था। वक्त बीतता गया और ये नौजवान धर्मेन्द्र के नाम से सिनेमा के रुपहले पर्दे पर छा गया। धर्मेंद्र फ़िल्मी दुनिया का एक चमकता सितारा तो बन गए मगर गुरु दत्त के उस एहसान को कभी नहीं भुला सके।धर्मेंद्र हमेशा सोचते कैसे इस उपकार को चुकाएँगे।

गुरु दत्त का अकस्मात् निधन और उनकी अधूरी फ़िल्म (Mysterious Death of Gurudutt and his unfinished movie)

death of Gurudutt
फ़िल्म बहारें फिर भी आएँगी का एक दृश्य

फिर एक दुखद दिन आया। 10 अक्टूबर 1964 को गुरु दत्त का अकस्मात् निधन हो गया। गुरुदत्त तो दुनिया छोड़ कर चले गए मगर धर्मेंद्र के दिल में अंदर ही अंदर एक खालिश रह गई कि वो इस प्रतिभावान निर्देशक का एहसान चुका ना सके। धर्मेंद्र को यह बात अंदर ही अंदर कसोटने लगी। गुरुदत्त साहब डिप्रेशन में थे जब उनकी मौत हुई। गुरुदत्त अपनी होम प्रोडक्शन की एक फ़िल्म प्लैन कर रहे थे। फ़िल्म का नाम था बहारें फिर भी आएंगी। 

मशहूर लेखक अबरार अल्वी का प्रयास 

अचानक हुई गुरु दत्त की मौत से फ़िल्म अधूरी लटक गई। इन सब कारणों से गुरुदत्त की कंपनी पर बहुत कर्जा भी चढ़ गया था। मगर फ़िल्म को पूरा करना बहुत ज़रूरी हो गया था। आख़िर महान गुरु दत्त की आख़िरी फ़िल्म थी। गुरु दत्त के भाई आत्माराम और उस ज़माने कर मशहूर लेखक अबरार अल्वी ने इस फ़िल्म को पूरा करने की ज़िम्मेवारी ली।

सुना गया है कि अबरार अल्वी साहब सबसे पहले अभिनेता सुनील दत्त के पास गए और उनसे गुजारिश की कि वो फ़िल्म को पूरा करने में मदद करें। सुनील दत्त दिल के बहुत बड़े थे मगर क़िस्मत को कुछ और मजूर था। जब अलवी ने दत्त साहब से प्रार्थना करी कि कुछ भी करके, किसी भी तरह से फ़िल्म कंप्लीट कर दें तो किसी कारणवश सुनील दत्त राजी नहीं हुए। उसके उपरांत एक के बाद एक 6 से ज़्यादा उस ज़माने के नामी सितारों ने किसी ना किसी वजह से इसे इनकार कर दिया। 

सभी सितारों के इनकार के बाद

अलवी साहब के लिए अब धर्मेंद्र की ही आखिरी उम्मीद थे। उस दौरान धर्मेंद्र पंजाब में किसी फ़िल्म की शूटिंग में बहुत वयस्थ थे। आव देखा ना ताव अबरार अल्वी साहब पंजाब पहुँच गए और धरम पाजी पूरी कहानी और स्थिति समझाई। अलवी शायद इतने मायूस हो चुके थे उन्हें उम्मेद नहीं थी कि धर्मेंद्र जैसे बड़े सितारे हाँ कह देंगे। उन्हें क्या ख़बर थी कि धरम कब से किस कश्मकश में थे।

धर्मेंद्र को लगा कि यही सही समय है, यही वो मौक़ा है कि वह माहन गुरु दत्त साहब का एहसान चुका सकते हैं। अलवी की उम्मेद के विपरीत धर्मेंद्र तुरंत तय्यार हो गए। इतना ही नहीं उन्होंने दूसरी कई  फिल्मों की शूटिंग कैंसल कर दी। गुरुदत्त की अधूरी फ़िल्म के लिए उन्होंने एक साथ डेट दे दीं। इस फ़िल्म का नाम था  ‘बहारें फिर भी आएंगी’। 

mysterious death of Gurudutt
Mysterious death of Gurudutt गुरुदत्त की फ़िल्म उनकी मृत्यु के बाद भी पूरी हुई

धर्मेंद्र की दरिया दिली 

कहा जाता है कि धर्मेंद्र ने इस फ़िल्म में काम करने के लिए एक भी पैसा नहीं लिया। फ़िल्म पूरी बनकर तय्यर हो गयी। यूँ तो फ़िल्म रिलीज होने पर कोई ख़ास कमाल नहीं कर पाई मगर एक मिसल ज़रूर बन गयी। धर्मेंद्र ने जीनियस गुरु दत्त को जिस तरह से जो श्रद्धांजलि दी सदा याद रखा जाएगा। आज कल के प्रफ़ेशनल फ़िल्मी युग में क्या कभी ऐसा दोबारा होई सकता है जहां सिर्फ़ पैसे का ही सिक्का चलता है।

ख़ैर वो दौर कुछ और था और उस दौर के लोग भी लंच और थे।  इस फिल्म के गाने काफी चले थे और मशहूर भी हुए।  इस फिल्म का एक गीत महेंद्र कपूर की आवाज़ में ‘उजड़ जाये अगर माली चमन होता नहीं खाली बहारें फिर भी आती है बहारें फिर भी आएगी’ आज भी लोग गुनगुनाते हैं। इसी गीत की यूट्यूब विडीओ के साथ हम यह लेख को समाप्त करते हैं और नमन करते हैं धर्मेंद्र और गुरुदत्त साहब को।

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