Actress Sadhana Quit Acting

Why Actress Sadhana Quit Acting in Bollywood: गुज़रे वक़्त की खूबसूरत अभिनेत्री साधना दो चीजों के लिए ख़ूब जानी जाती हैं, एक तो उनका गजब का वेस्टर्न हेयर स्टाइल और दूसरी उनकी दिलकश, नशीली जीवंत आँखें। उनकी इन्हीं मंत्र मुग्ध कर देने वाली मोहक आंखों की ख़ूबसूरती को वह अपने करियर के शिखर पर खो देंगी। आख़िर ऐसी कौन सी वजह थी कि साधना ने ना सिर्फ़ अपनी नरगिसी आंखों की ख़ूबसूरती को खो दिया बल्कि फिल्मी कैमरे का सामना करना भी छोड़ दिया (Actress Sadhana Quit Acting। 

कैसे शुरू हुआ साधना का फ़िल्मी सफ़र – Acting Career of Actress Sadhana Shivdasani

कराची में जन्मी साधना शिवदासानी ने पहली सिंधी फिल्म अबाना (1958) से सिल्वर स्क्रीन पर डेब्यू किया। यू तो इस सिंधी फिल्में वह नायक की बहन बनी थी लेकिन नायिका की बहन के रूप में उनकी उपस्थिति को कई लोगों का ध्यान खींचा। अपनी पहली फिल्म से साधना की आंखों ने ही लोगों का ध्यान खींचा, जिनमें फिल्मालय के कै चर्चित निर्माता शशिधर मुखर्जी भी शामिल थे। शशिधर मुखर्जी ने जब साधना की ओवरऑल पर्सनैलिटी और ख़ासकर के उनकी आंखों देखीं तो वह इस नतीजे पर पहुँच गए कि उनकी अगली फिल्म की हीरोइन मिल गई है।

फ़ौरन मुखर्जी ने अपने निर्देशक आर के नैय्यर से उन्हें अपनी अगली फिल्म ‘लव इन शिमला’ में साधना को नायिका की भूमिका के लिए विचार करने के लिए कहा। साधना ने चश्माधारी टॉमबॉय जैसी नायिका के रूप में एक यादगार शुरुआत की। इसके बाद ‘एक मुसाफिर एक हसीना’ (1962) आई। बॉलीवुड पर साधना का जादू चलना लिखा था सो ख़ूब चला। लेकिन अभी तो महज़ शुरुआत थी। 

1960 से 1962 का शुरुआती दौर से ही साधना छा गयीं

1960 से 1962 के बीच अपने पहले चरण जब उन्होंने ‘लव इन शिमला’, ‘हम दोनों’ और ‘असली-नकली’ जैसी फ़िल्में कीं तो उनको एक ग्लैमर गर्ल के रूप में पहचान मिली। हालाँकि शुरुआत से ही उन्होंने अपनी सधी अदाकारी से एक उत्कृष्ट अभिनेत्री के रूप में भी अपने आप को स्थापित किया, ख़ासकर अगर हम बात करें उनके गैर-ग्लैमरस भूमिकाओं की जैसे ‘परख’ और ‘मनमौजी’ जैसी फ़िल्में। इन अर्थपूर्ण चरित्रों को जीवंत करने के लिए उनकी एक्सप्रेसिव अभिव्यंजक आँखों का बहुत  बड़ा योगदान रहा। 

1963 और 1966 के बीच का सबसे ज़बर्दस्त दौर

फिर आया उनका सबसे ज़बर्दस्त 1963 और 1966 के बीच का दौर। इस दौरान उन्होंने ‘एक मुसाफिर एक हसीना’, ‘मेरे मेहबूब’, ‘वो कौन थी’, ‘राजकुमार’, ‘आरज़ू’, ‘वक़्त’, बदतमीज़ और ‘मेरा साया’ जैसी सुपर हिट फ़िल्मों से पूरे देश को दीवाना बना दिया था। वक्त फिल्म यूँ तो बहुत से कारणों की वजह से जानी जाती है, लेकिन इस फिल्म से साधना का तो यकीनन सबसे सुनहरा वक्त आ गया था। हिंदी फिल्मों ने हमेशा से उस दौर के के पहनावे को प्रभावित किया है।

‘वक़्त’ फ़िल्म के दौरान जैसे साधना को सलाम करने के लिए वक़्त भी रुक गया

‘वक़्त’ भी ऐसी ही एक फिल्म थी जिसके बाद साधना एक ट्रेंड-सेटर बन गईं। उनकी शैली की नकल देश भर की महिलाओं ने की। इस फ़िल्म के बाद उन्हें एक हेयर स्टाइल पेश करने का सबसे ज़्यादा श्रेय दिया जाता है जिसे आज भी लोग साधना कट हेयरस्टाइल ही कहते हैं। अपने माथे को उन्होंने इस क़दर फ्रिंज से ढका कि लोग इस स्टाइल पर पागल हो गये। साधना कट अब स्टाइल सेटमेंट बन गया था। लेकिन फ्रिंज लातों के नीचे साधना की जीवंत आँखें ही उसकी ख़ूबसूरती बढ़ा रही थी, इस बात से उनके फैंस अनभिज्ञ थे। उन्हें तो बस साधना की नकल करनी थी। 

मेरे महबूब फ़िल्म में साधना की नरगिसी आँखों का तिलिस्म

साधना के इसी सुनहरे दौर में आई फिल्म ‘मेरे महबूब’ को भला कौन भूल सकता है। इस फ़िल्म में बुर्के के पीछे दिखीं सिर्फ साधना की दो लुभाती मदभरी आँखें। इन आँखों की ख़ूबसूरती ने पूरे देश को हिला दिया था। कैसे बुर्क़ा पहने साधना की सिर्फ़ दो आँखें देख राजेंद्र कुमार उन्हें दिल दे बैठते हैं वह सीन हिन्दी सिनेमा के सबसे रोमांटिक और यादगार दृश्यों में गिना जाता है। राजेंद्र कुमार इस फ़िल्म में इन्हीं नरगिसी आँखों को तलाशते फिरते हैं, लेकिन शायद उनके साथ उस ज़माने हर जवाँ-दिल दीवाने ने साधना की उन आँखों को याद कर के यह नग़मा ज़रूर गुनगुनाया होगा। 

‘मेरे मेहबूब तुझे मेरी मोहब्बत की कसम,
फिर मुझे नरगिसी आँखों का सहारा दे दे,
मेरा खोया हुआ रंगीन नजारा दे दे
मेरे मेहबूब तुझे मेरी मोहब्बत की क़सम’

फ़िल्म ‘मेरे मेबूब ‘की मशहूर ग़ज़ल

साधना की नरगिसी आँखों को जाने किस की नज़र लग गई

लेकिन साधना की नरगिस आंखों को न जाने किसकी नजर लग गई। साधना की जीवन का एक बहुत ही मुश्किल दौर सामने खड़ा था। साधना उस वक़्त अपनी लोकप्रियता के शिखर पर खड़ी थीं कि वह थायराइड से पीड़ित हो गईं। 1967 से 1969 के बीच के दौरान थायरॉइड की समस्या का असर उनके चेहरे और आँखों पर गंभीर रूप से पड़ा। हालाँकि उन्होंने ‘अनिता’, ‘इंतक़ाम’, ‘एक फूल दो माली’ आदि में अभिनय किया, लेकिन उनके लुक पर बीमारी का असर बढ़ता गया।

कुछ वक़्त पहले ही जिन आँखों पर शायर क़सीदे रचते थे वही आँखें अशोभनीय रूप से बाहर निकल आईं। लेकिन फिर भी वह अपना सर्वश्रेष्ठ देने में सफल रहीं। साधना फ़िल्मों में अब चेहरा दिखाने से हिचकने लगीं थीं। वॉच नहीं चाहतीं थीं कि उनके प्रशंसक उनके बदलते हुए स्वरूप की वजह से उनसे मुंह फेर लें। 

फिर दर्द भरा समय आया मगर साधना ने हिम्मत बनाई रखी

इसके बाद का दौर सच में साधना के लिए बहुत दुख भरा था। उन्हें अपने स्टारडम की आदत भी थी और अपनी शोहरत का योग भी। 1970 से 1978 तक दौर में ‘सच्चाई’, ‘इश्क पर जोर नहीं’, ‘आए दिन बहार के’, ‘दिल दौलत और दुनिया’, ‘गीता मेरा नाम’, ‘वंदना’, ‘अमानत’, ‘छोटे सरकार’, ‘महफिल’, ‘आप आए बहार आई’ आदि जैसी कई फिल्मों से वह ख़ुद को साबित करने में जुटीं रहीं। फ़िल्में अच्छी थीं, साधन भी मगर जादू ग़ायब था।

उन्हें मायावी स्टारडम से चिपके रहने की बेतहाशा कोशिश करते देखा गया। उनके चाहने वालों को दुख था की प्रतिभा होते हुए भी अब वही वक़्त उनका साथ छोड़ बैठा था। लेकिन समय की दीवार पर लिखावट साफ थी। उनके स्टारडम के दिन ख़त्म हो गए थे। साधना जैसी अभिनेत्री को अब ऑफर आने बंद हो गए थे। . वह साधना नाम की दीवानगी का अंत था।

अच्छे से अच्छे उपचार के बावजूद, उनकी बीमारी ने उनकी कभी ख़ूबसूरत नर्गिसी आँखों को प्रभावित किया और चेहरे की बनावट को भी। करियर के चरम पर उनका करियर अचानक रुक गया और उन्होंने अपने मेडिकल समस्याओं से लड़ने के लिए सार्वजनिक चकाचौंध से बचते हुए खुद को गुप्त एकांत स्थान के हवाले कर दिया। यह साधन जैसे लोकप्रिय कलाकार के लिए बहुत बड़ा फ़ैसला था। 

1994 में फिर आई उनकी फ़िल्म 

1994 में साधना जी की आखिरी फिल्म आई जिसका नाम था उल्फत की नई मंज़िलें (Ulfat Ki Nayee Manzilein) । कहा जाता है कि इस अधूरी फिल्म को राजकुमार फिल्म को लगभग 25 साल के अंतराल के बाद अभिनेता राजकुमार ने पूरा करने और रिलीज़ करने का जिम्मा लिया। फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे राजकुमार, साधना, वहीदा रहमान, रमेश देव और सीमा देव। जैसा अपेक्षित था इतनी सालों के बाद फ़िल्म रिलीज़ हुई तो अच्छी होते हुए भी बुरी तरह पिट गई।

ख़राब स्वास्थ्य ने उन्हें लगातार घेरे रखा – Actress Sadhana Quit Acting

दुर्भाग्य से, ख़राब स्वास्थ्य अभिनेत्री को परेशान करता रहा। थायरॉयड के बाद, उन्हें एक नेत्र रोग हो गया जिसके कारण कुछ महीनों तक उन्होने अपनी आंखों की रोशनी को दी। काफी इलाज के बाद उनकी एक आंख की दृष्टि वापस आ सकी। दिसंबर 2014 में साधना जी को के जे सोमैया मेडिकल कॉलेज में मुंह में रक्तस्राव के घाव के कारण आपातकालीन सर्जरी से गुजरना पड़ा। काफ़ी समय बीमार रहने के बाद 25 दिसंबर, 2015 को मुंबई के हिंदुजा अस्पताल में कैंसर से उनकी मृत्यु हो गई।

अगर उनकी नरगिसी आँखों ने साथ ना छोड़ा होता तो…

साधना का स्टारडम बड़े का लाजवाब तो था लेकिन क्षणिक भर था। वह महज 24-25 साल की थीं, जब जब अपने फ़िल्मी करियर की ऊंचाइयों पर थी कि तभी थायराइड ने उन्हें घेर लिया। काश ऐसा ना हुआ होता और उनकी नरगिसी आंखों ने उन्हें धोखा ना दिया होता तो उनमें वह सुंदरता और प्रतिभा थी कि वह अभूतपूर्व सुपरस्टारडम हासिल कर सकती थीं। 

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