Why Kanpur Name was Changed 21 times: कानपुर का ना सिर्फ़ नाम निराला है यहां के लोग, यहाँ की बोली, ख़ान पान, यहां की बात ही निराली है। लेकिन लेकिन एक बात और जो कानपुर की निराली है वह यह है कि इसका नाम सन 1700 के अंत से लेकर अब तक 21 बार बदला गया है। इतना ज़्यादा नाम बदलने की भी क्या ज़रूरत थी, यह तो वक़्त और उस दौर को ही मालूम हैं मगर जितना हमें पता है हम आप से साँझा करना चाहतें हैं।
हमारा कानपुर था ब्रिटिश शासन का “Cawnpore”
कई लोगों को यह बात भली भाँति मालूम है कि ब्रिटिश शासन के दौरान कानपुर को इसके पूर्व नाम “Cawnpore” से जाना जाता था। वह शहर जिसे ‘पूर्व का मैनचेस्टर’ कहा जाता था, भारत में औद्योगिक केंद्र और औद्योगिक क्रांति का केंद्र था। शहर के कई नाम बदले गए हैं और लोग केवल अनुमान ही लगा सकते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में कानपुर को अलग-अलग तरह से क्यों बुलाया जाता रहा है। रिपोर्टों के अनुसार सन 1700 के अंत से लेकर अब तक कानपुर का नाम 21 बार बदला गया है।जितनी जानकारी हम हम कानपुर के कई नाम परिवर्तनों और उनके पीछे की कहानियों के बारे में जुटा सके वह पेश है।
कान्हपुर
एक लोकप्रिय कहानी के अनुसार, इस जिले की स्थापना एक हिंदू राजा चंदेल ने की थी, जो एक कट्टर कृष्ण भक्त थे। राजा ने भगवान कृष्ण के जन्मदिन-जन्माष्टमी के दिन जिले की स्थापना करने की योजना बनाई, इसलिए इस स्थान को कन्हियापुर के नाम से जाना जाने लगा, जिसे बाद में कान्हापुर और फिर कान्हपुर के रूप में संक्षिप्त किया गया।
कर्णपुर
कानपुर एक ज़माने में करणपुर रहा है। पुराने संदर्भों से यह भी पता चलता है कि यह नाम कर्णपुर से लिया गया है और महाभारत के नायकों में से एक कर्ण से जुड़ा है। यह बात भी व्यापक रूप से माना जाता है और इतिहासकारों द्वारा भी समर्थित है।
खानपुर
हालांकि यह व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है कि कानपुर एक समय छोटे सैन्य गांवों का संग्रह था, कुछ लोगों का मानना है कि यह प्रतिष्ठान अफगानिस्तान के खान समुदाय का घर था। 1765 में, अवध के नवाब वजीर शुजा-उद-दौला को जाजमऊ के पास अंग्रेजों ने हरा दिया था। यह व्यापक रूप से माना जाता है कि इससे पहले कि अंग्रेजों को शहर के रणनीतिक महत्व का एहसास हुआ और उन्होंने इसे “Cawnpoor” नाम दिया, बहुसंख्यक मुस्लिम प्रतिष्ठान को “खानपुर” कहा जाता था।
अंग्रेजों को कानपुर के सामरिक महत्व का एहसास हुआ
संभवतः तभी अंग्रेजों को कानपुर के सामरिक महत्व का एहसास हुआ, जिन्होंने 1770 में इस स्थान को ‘कावनपुर’ के रूप में एक नया नाम भी दिया। यूरोपीय व्यापारियों की प्रगति और स्थापना के बाद, शहर विभिन्न नामों और संस्कृतियों के साथ उभरा। 1801 की अवध के नवाब सआदत अली खा नकानपुरके साथ संधि के अन्तर्गत यह शहर ब्रिटिश शासन के अधीन आ गया।
इसी बीच कानपुर को एक नया नाम मिल गया। 1776 में अंग्रेजों ने इसे ‘Caunpour’ यानी ‘काउंपोर’ नाम से पुकारा। कानपुर नगर के इतिहास में यह एक महत्वपूर्ण मोड़ बन गया। “पहले दो वर्तनी (स्पेलिंग) थे Caunpore और Cawnpour जो कि क्रमशः 1785 और 1788 में कानपुर को यह नाम दिया गये थे। 1788 में अंग्रेजों द्वारा इस शहर को “Cawnpore” कहा गया ।
बदलते रहे नाम मगर जज़्बा वही रहा
इसके तुरंत बाद कानपुर ब्रिटिश भारत का सबसे महत्वपूर्ण सेना स्टेशन बन गया और 1790 फिर नया नाम रखा गया कावनपोर (Kawnpore) रखा गया।अंग्रेजों को कानपुर से ना जाने कैसा अजीबोगरीब लगाव था कि इसके बाद एक के बाद एक और नाम बदले गए और साथ ही भौगोलिक क्षेत्र और संस्कृति में भी बदलाव आया। बाद में, मार्च 24,1803 को Cawnpore को जिला घोषित किया गया और ज़िले का खानपोर (Khanpore) रखा गया था।
1857 के बाद कन्नपुर (वर्तमान कानपुर) का विकास बहुत तेज़ी से हुआ और इसकी महत्त्वता अभूतपूर्व रूप से बढ़ गई। अंग्रेजों के दिमाग में न जाने क्यों फिर से कुछ विचार आया और 1879 में शहर के नाम को कावनपोर (Caawnpore) के साथ संक्षिप्त कर दिया गया। कहा जाता है कि आजादी से पहले इस शहर के नाम की वर्तनी (spelling) को 11 बार बदला गया!
कानपुर – Kanpur Name
इतिहासकारों की माने तो मई 1765 में, अवध के नवाब वजीर शुजा-उद-दौला को जाजमऊ के पास अंग्रेजों ने हरा दिया था। जब अंग्रेजों को इस क्षेत्र के महत्व का एहसास हुआ, तो उन्होंने इसे कई नामों से पुकारा, जिनमें से सबसे अधिक इस्तेमाल किए जाने वाले नाम थे – कावनपुर, काउनपुर, काउनपोर, कावनपुर, कावनपोर और अंत में कावनपुर।
अंग्रेजों को कानपुर से ताला का उपयोग था और इसके नाम बार-बार बदलने की क्या सनक थी इसका कोई निश्चित उत्तर नहीं है लेकिन यह बात तो तय है कि कानपुर व्यवसाय और भौगोलिक दृष्टि से अंग्रेजों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण शहर रहा है। इस शहर में अंग्रेजों के प्रति काफी आक्रोश था, और यह शहर 1857 के विद्रोह का केंद्र भी था, जिसने ब्रिटिश प्रशासन को हिलाकर रख दिया था और बड़े पैमाने पर रक्तपात हुआ था।
और अंत में-कानपुर
देश की आजादी के बाद आखिरकार 1948 में शहर का नाम बदलकर कानपुर कर दिया गया और तभी से यह नाम अटका हुआ है। जो कभी क्रांति और धन की भूलभुलैया और औद्योगिक क्रांति का केंद्र था, आज वहीं रुका हुआ है, कानपुर शहर, इसका इतिहास, ऐतिहासिक महत्व इतिहास की किताबों के सूखे पन्नों में खो गया है।
कानपुर का नाम अब नहीं बदलना चाहिए
वर्तमान समय समय में भी बहुत से शहरों के नाम बदले जा रहे हैं और कानपुर वाले डरते हैं कि कहीं दोबारा से इस शहर का नाम ना बदल दिया जाए। शहर का नाम इतनी बार बदला हो उसके नागरिकों का ऐसा डर लाज़मी भी है। अच्छा तो यह है कि कानपुर का नाम अब ना बदला जाए और इस शहर में समृद्धि और खुशहाली रहे।
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