Mohammad Rafi with Impala Car

Mohammed Rafi Impala Car Story: मोहम्मद रफी किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। वह भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के महानतम गायकों में से थे, इसमें बात में कोई दो राय नहीं है। उनके एक से बढ़कर एक गाए हुए गीत आज भी उतना ही लोकप्रिय हैं जितने उस समय रहे होंगे जब वह रिलीज़ हुए थे। लेकिन आज हम चर्चा उनके गीतों के बारे में या उनकी गायकी के बारे में नहीं करने जा रहे हैं आज हम चर्चा  करेंगे मोहम्मद रफी के बड़े दिल की  और उनकी इंसानियत की। 

उन्हें बस संगीत से वास्ता था दौलत से नहीं

एक इंसान के रूप में रफ़ी में उल्लेखनीय गुण थे। उन्होंने एक भी गाने के लिए अपने मुआवज़े के बारे में कभी नहीं पूछा। इसके विपरीत वह फ़िल्म निर्माताओं को उलझन के दिनों में वित्तीय सहायता दे देते थे। उनकी उदारता जरूरतमंद लोगों की सहायता के लिए हमेशा याद रखी जाएगी। यहां तक ​​कि 60 के दशक में (अपने करियर के बहुत ऊंचे शिखर पर) भी, वह कॉलेजों या विश्वविद्यालयों के छात्रों से निमंत्रण स्वीकार करते थे, समारोह में भाग लेते थे, 2/3 गाने गाते थे और एक भी रुपया स्वीकार नहीं करते थे। युवकों को जीवन में प्रेरित करने का यह उनका उदारता भरा अनूठा प्रयोग था। 

ओ.पी. नैय्यर साहब के सवाल का रफ़ी ने क्या दिया जवाब – O. P. Nayyar and Mohammed Rafi

रफी ने एक से बढ़कर एक दिग्गज संगीत निर्देशकों के साथ काम किया लेकिन कभी भी कोई जरूरतमंद या नया संगीतकार उनकी आवाज में गीत गवाने के लिए उनके पास आया तो रफी ने कभी मना नहीं किया। एक बातचीत के दौरान, ओ.पी. नैय्यर साहब ने एक बार रफ़ी साहब से पूछा कि क्या उन्हें नए संगीत निर्देशकों से भी उतना ही भुगतान मिलता है जितना स्थापित संगीतकारों से मिलता है।

रफ़ी साहब का बेजोड़ जवाब

रफ़ी साहब ने जवाब दिया कि ये युवा निर्देशक अक्सर उनसे कहते थे कि अगर वह उनके लिए एक गाना गाएंगे, तो इससे उनके करियर को काफी मदद मिलेगी। उन्होंने बताया कि उनके लिए असली इनाम बहुत सारा पैसा पाना नहीं था, बल्कि यह जानना था कि उनकी गायकी किसी के करियर में बड़ा बदलाव ला सकती है। उन्होंने कहा, “अब, अगर मेरा सिर्फ एक गाना उनके करियर को आगे बढ़ाने में मदद करता है, तो इससे बेहतर इनाम क्या हो सकता है?”

क़िस्सा इम्पाला कार और रफ़ी की मजबूरी का – Mohammed Rafi and Impala Car

जब रफ़ी साहब अपनी प्रसिद्धि के चरम पर थे, तो कुछ दोस्तों ने उन्हें अपनी कार बदलने का सुझाव दिया। रफ़ी ख़ुद तो सादगी में विश्वास रखते थे लेकिन दोस्तों की बात भी नहीं टाल पाए। दरअसल शायद उन्हें किसी बात को मना करना ही नहीं आता था। दोस्तो का सुझाव रफ़ी ने माँ लिया। फिर क्या उस ज़माने का स्टेटस सिंबल इंपाला कार को खरीदा गया। चमकती दमकती कलाकार मोहम्मद रफी के घर के सामने मौजूद थी। कार तो जबरदस्त थी लेकिन एक समस्या आ खड़ी हुई। 

ड्राइवर कार नहीं चला पाया

समस्या यह थी कि अमेरिकी कार होने के कारण इसमें बायीं ओर स्टीयरिंग थी। रफी साहब के ड्राइवर को, जो राइट हैंड स्टीयरिंग का आदी था, काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। यह कार कई बार दुर्घटनाग्रस्त हो गई। दोस्तों ने रफ़ी साहब को अपना ड्राइवर बदलने की सलाह दी। लेकिन चूंकि ड्राइवर परिवार जैसा था इसलिए रफी साहब को ये सलाह मंजूर नहीं थी। उन्होंने अपने ड्राइवर को अपने खर्च पर प्रशिक्षित करने की व्यवस्था की। इस बीच इम्पाला गैरेज में खड़ी रही।

प्रशिक्षण के बाद भी ड्राइवर ने अपने हाथ खड़े कर दिए

ड्राइवर साहब ने प्रशिक्षण ले लिया इंपाला चलाने के लिए तैयार। रवि भी खुश थे की चलो ड्राइवर इंपाला कार चलाना सीख जाएगा और इसकी नौकरी भी सुरक्षित रहेगी। लेकिन जो आगे हुआ बहुत ही दुख भरा हुआ शास्त्र के ड्राइवर के लिए।दुर्भाग्यवश प्रशिक्षण के बाद भी ड्राइवर इम्पाला को संभाल नहीं सका। ड्राइवर ने अपने हाथ खड़े कर दिए। रफ़ी साहब के सामने एक नैतिक दुविधा थी। अब उन्हें एक नया ड्राइवर नियुक्त करना एक मजबूरी बन गई थी लेकिन वह पुराने ड्राइवर को जाने भी नहीं दे सकते थे।  

रफ़ी की महानता

आख़िरकार रफ़ी साहब ने जो समाधान खोजा जो इनके वुअक्तित्व की महानता को बयान करता है। उन्होंने एक नई टैक्सी खरीदी और उसे अपने पुराने ड्राइवर को दे दी, ताकि ड्राइवर की आजीविका पर को प्रभाव ना पड़े। पुराना ड्राइवर जब निश्चिंत हो गया उसके रोजी-रोटी का बढ़िया इंतजाम हो गया उसके बाद ही इम्पाला सड़क पर नज़र आई, जिसे नया ड्राइवर चला रहा था।

भगवान की आवाज़ कभी सुनाई देगी तो हुबहू रफ़ी (Mohammed Rafi) जैसी ही होगी

मोहम्मद रफ़ी एक बहुत ही सरल आत्मा थे, जो अपनी जड़ों और सादगी को कभी नहीं भूले। वह बहुत कम गायकों में से थे, जिन्होंने कभी भी अपने सेलिब्रिटी स्टेटस का दुरुपयोग नहीं किया। उन्होंने हमेशा सभी के साथ सच्चे प्यार और देखभाल के साथ व्यवहार किया। वॉच इतने नेक़दिल थे कि उनकी इंसानियत के किससे उनके रहते और उनके चले जाने के बाद भी सुनाए जाते हैं। यूँही नहीं रफ़ी के प्रशंसक कहते हैं भगवान की आवाज़ कभी सुनाई देगी तो हुबहू रफ़ी जैसी ही होगी।

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