Dharnai first Solar powered village of India

Story of Dharnai first solar village of India: आप इस लेख को बड़े आराम से पढ़ रहे हैं जिस से आसानी यह अंदाज़ा लगाया निकाला जा सकता है कि या तो आपके पास मोबाइल फोन है या फिर आप एक कंप्यूटर इस्तेमाल कर रहे हैं। ज़ाहिर सी बात है जब मोबाइल या कंप्यूटर आपके पास है तो बिजली का बंदोबस्त भी ज़रूर होगा। 

कैसे बदली इस गाँव की क़िस्मत

इस डिजिटल युग में रहने वाले हम में से अधिकांश लोगों के लिए, एक घंटे की बिजली कटौती भी पूरे दिन को बर्बाद कर सकती है।अब कल्पना कीजिये ऐसी पूरी पीढ़ी की जिसने प्रकाश बल्ब की चमक नहीं देखी हो। यह एक ऐसा ही गांव था बिहार का धरनई। लेकिन उस गाँव के लोगों की संकलप शक्ति और मेहनत की बदौलत गाँव की काया पलट गई और वह आज बन गया भारत का पहला पूर्ण सौर ऊर्जा संचालित गांव। 

कभी कभी मौका लगे तो शहरों की जगमग से निकलकर गांव की तरफ रुख करना, और अपनी आंखों से देखना इन गांव की शामें कैसी होती हैं। शाम ढलने के बाद, अंधेरे में डूबे इन वीरान गांवों में आप कदम रखते हैं तो वास्तविकता सामने आती है। बिहार के धरनई की भी कुछ ऐसी कहानी थी। धरनई के नागरिकों को 20 जुलाई 2014 से पहले बिजली नसीब नहीं थी। 

बिहार के ग्रामीणों ने दिखाया है पूरे देश को रास्ता

धरनई लगभग 2400 लोगों का एक छोटा सा गाँव है। बिहार के जहानाबाद जिले में बोधगया के पास स्थित, इसमें बिजली की पहुंच नहीं थी। लेकिन कुछ साल पहले, ग्रामीणों ने व्यवस्था को अपने हाथों में ले लिया और अपनी किस्मत हमेशा के लिए बदल दी। ग्रीनपीस नामक संस्था की मदद से, गांव ने एक सौर ऊर्जा संचालित माइक्रो-ग्रिड स्थापित किया, जो 450 से अधिक घरों और 50 वाणिज्यिक प्रतिष्ठानों को 24×7 बिजली प्रदान करता है। पूरे प्रोजेक्ट की लागत 3 करोड़ रुपये थी, जिससे धरनई भारत का पहला पूरी तरह से सौर ऊर्जा संचालित गांव बन गया।

खतरनाक ईंधन का उपयोग से सोलर ऊर्जा तक का सफ़र

बिजली ना होने की वजह से धरनई के लोग जैसे जैसे तैसे जीवन निर्वाह कर रहे थे। वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों के रूप में, इस क्षेत्र की ग्रामीण आबादी खाना पकाने और रोशनी के लिए गाय के गोबर, केरोसिन लैंप और जलाऊ लकड़ी जैसे खतरनाक ईंधन का उपयोग करती है। WHO के अनुसार, इन खतरनाक ईंधनों से खाना पकाने के कारण होने वाले घरेलू वायु प्रदूषण के कारण बीमारी से चार मिलियन से अधिक लोग समय से पहले मर जाते हैं।

यह परियोजना 20 जुलाई 2014 को लगभग 3 करोड़ रु. की प्रारंभिक लागत के साथ शुरू की गई थी। इस परियोजना ने धरनई को पूरी तरह से सौर ऊर्जा से संचालित होने वाला भारत का पहला गांव बना दिया। इस प्रणाली की क्षमता 100 किलोवाट है और यह 2,400 निवासियों के 450 घरों, 50 वाणिज्यिक परिचालनों, गांव में 60 स्ट्रीट लाइटों, दो स्कूलों, एक प्रशिक्षण केंद्र और एक स्वास्थ्य देखभाल सुविधा को बिजली प्रदान करती है। बैटरी बैकअप सुनिश्चित करता है कि चौबीसों घंटे बिजली उपलब्ध रहे।

जब से धरनई ऊर्जा-स्वतंत्र गांव हुआ है – Dharnai first solar village of India

जब से धरनई ने खुद को एक ऊर्जा-स्वतंत्र गांव घोषित किया है, छात्रों को अब अपनी पढ़ाई को दिन तक सीमित नहीं रखना पड़ता है, महिलाओं को अब रात में अपने घरों से बाहर निकलने में डर नहीं लगता है, और छोटे उद्योग समृद्ध हो रहे हैं, क्योंकि इस ग्राम के नागरिक अपनी और गाँव की बेहतरी के लिए काम कर रहे हैं।

सौर ऊर्जा से चलने वाली बिजली के आने से यहां के लोगों, विशेषकर महिलाओं और बच्चों के जीवन में क्रांति आ गई है। यह बच्चों को दिन के उजाले के बाद भी पढ़ने की अनुमति देता है और महिलाओं को अंधेरा होने से पहले खाना पकाने पर लगे प्रतिबंध को हटाता है। इसके अलावा, धरनई में महिलाएं अब स्ट्रीट लाइट के कारण अंधेरा होने के बाद भी बाहर निकल सकती हैं।

जहां बिजली ही ना हो वहाँ पर भला मोबाइल फोन का क्या काम। शायद इसलिए धरनई तमाम देश से अलग थलग, कटा हुआ सा था। ना तो ज्ञान था ना विकास था, और इंटरनेट क्रांति तो इस गांव तक नहीं पहुंची थी। सौर ऊर्जा संचालित पंपों ने किसानों को ताजे पानी तक पहुंच प्रदान की है। लोग अब अपने मोबाइल फोन को नियमित रूप से चार्ज करने में सक्षम हैं, और इंटरनेट की दुनिया भी अब धरनई के लोगों के लिए खुली है।

अब लगता है भारतवर्ष का उज्जवल भविष्य निश्चित है

धरनई तो बस बस एक छोटी सी शुरुआत है। यह क्रांति अब शर्तिया गांव-गाँव, कस्बे-कस्बे फैलेगी। शायद शहरों में सस्टेनेबल लिविंग सिर्फ एक फैशन स्टेटमेंट है और मात्र बोलने की बात है, असली सस्टेनेबल जीवन कैसे जिया जाता है, यह भारत के गाँव दुनिया को सिखलाएँगे। अबकी तरक़्क़ी शहर से नहीं गाँव से शुरू होगी और धरनई इसकी जीती जागती मिसाल है। धरनई के प्रकाश को देख कर अब लगता है भारतवर्ष का उज्जवल भविष्य निश्चित है।

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