Have you ever thought what is the origin and history of potato? क्या कभी आपने सोचा कि आम सा लगने वाला आलू कितना ख़ास है। आपने शायद ही कभी कोशिश करी होगी कि चलो आलू का इतिहास (history of potato) पता करते हैं। हाँ अक्षय कुमार का गीत जरूर सुना होगा ‘जब तक रहेगा समोसे में आलू, तब तक रहेगी मेरी तू शालू। लेकिन यह समोसे वाला आलू दरअसल भारतीय मूल का नहीं है। सब्ज़ियों का सुपर स्टार आलू दरसल विदेश से आया था। लग गया ना झटका? आपको विश्वास नहीं आ रहा? लेकिन यह सच है। आयिए तरकारियों में लोकप्रिय आलू जी के बार में और जानें।
ऑलराउंडर आलू जी का महत्व
आलू जी में अहंकार ना के बराबर है। सरल स्वभाव का आलू किसी भी तरकारी में डालो तो उसी के रंग रूप में ढल जाता है। आजकल के बच्चे आलू चिप्स के बग़ैर तो जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते। लाखों भारतीयों और दुनियवालों की भूख मिटाने वाला आलू स्वाद का भी चैम्पीयन हैं।
भारत में वर्ग और जाति के विभाजन को तोड़ते हुए, एक साधारण उबला हुआ आलू मुख्य भोजन का हिस्सा झट से बन जाता है चाहें वह दक्षिण भारत का नाश्ते का मसाला दोसा हो या फिर डिनर दावत में लखनऊ का पुलाओ। आलू की सार्वभौमिकता का क्या कहना। आलू की सफल फसल देश का पेट भी भर सकती है और अगर फसल बर्बाद ही जाए तो देश बर्बाद कर सकती है। 1845 के भयानक आयरिश आलू अकाल का क़िस्सा ले लीजिए जिसने हजारों लोगों को मार डाला और देश का स्वरूप हमेशा के लिए बदल दिया।
साधारण सा आलू पृथ्वी के बाहर उगाई जाने वाली पहली सब्जी बना
आलू को महिमा जानिए कि इसके लिए नासा और चीन द्वारा स्पेस स्पड उगाए गए थे और 1995 की शुरुआत में स्पेस शटल कोलंबिया में परीक्षण किया गया था, जिससे आलू पृथ्वी के बाहर उगाई जाने वाली पहली सब्जी बन गया। आलू लगे कितना भी साधारण लगे लेकिन यही वह सब्ज़ी है जो भूमि और समुद्र और बाहरी अंतरिक्ष में हजारों मील की यात्रा कर चुकी है। चलिए इसके संक्षिप्त इतिहास पर नज़र डालते है।
आलू का इतिहास (History of Potato) : पश्चिम के उदय में बहुत बड़ा योगदान
आलू 16वीं शताब्दी तक केवल पेरू में ही जाना पहचाना जाता था उसके अलावा सारी दुनिया आलू के बारे में कुछ भी नहीं जानती थी। क्रिस्टोफर कोलंबस की यात्राओं ने दुनिया के विभिन्न हिस्सों को खोल दिया और कोलंबियाई एक्सचेंज के रूप में जाना जाने लगा। इसलिए इसका श्रेय शायद कोलंबस को ही जाएगा कि आलू को अपने मूल स्थान पेरू से समुद्र के रास्ते दुनिया के लगभग हर महाद्वीप तक यात्रा करने का मौक़ा मिला।
उगाने में आसान, मौसम की अनिश्चितताओं के लिए लचीला और प्रचुर मात्रा में इसकी पीयदवार ने आलू को बहुत जल्द भोजन की कमी का जवाब माना जाने लगा। देखते ही देखते आलू पूरे यूरोप में लोकप्रिय हो गया। कुछ इतिहासकारों ने यह भी तर्क दिया है कि आलू ने अकाल को समाप्त करके और तेजी से बढ़ती आबादी की आपूर्ती कर के पश्चिम के उदय में बहुत बड़ा योगदान दिया।
आलू बना उपनिवेशवाद का शस्त्र
इसके बाद, आलू का इतिहास (history of potato) और यात्रा व्यापार, विस्तारवाद और उपनिवेशवाद के साथ जुड़ा हुआ था। यूरोप से अफ्रीका और एशिया तक, आलू समुद्र के रास्ते पहुँचा और हर जगह की मिट्टी और आबों हवा के अनुरूप ढाल जाने वाले ने हर तरफ़ जड़ें जमा लीं।
भारत में आलू का आना और बस जाना (History of Potato in India)
भारत में आलू की कहानी (History of potato in India) शुरुआती पुर्तगाली और डच व्यापारियों से शुरू होती है। हालांकि, उनका प्रभाव या पहुंच पूरे उपमहाद्वीप में नहीं फैला और आलू मालाबार तटरेखा के छोटे-छोटे टुकड़ों तक ही सीमित रहा।18वीं शताब्दी में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन आलू को नई गति मिली।
स्थानीय सब्जियों की किस्मों को अधिक बेहतर पौधों से बदलने का विचार को बहाना बनाकर आलू को परिचित किया गया। उस समय इंग्लैंड में भी आलू के नॉवल्टी आइटम थी और ब्रिटिश कंपनी के एजेंट विदेशी भूमि में भी इस नई वस्तु को अपने भोजन का हिस्सा रखना चाहते थे।
चूंकि उनका भारत में एक दीर्घकालिक मिशन था, इसलिए आलू उगाना उन्हें आयात करने की तुलना में कहीं अधिक समझ में आया। इसलिए, पौधों को किसानों को कम कीमत पर दिया गया। समग्र एजेंडा था आलू ख़ुद तो खाओ ही, साथ-साथ दुनिया भर में आलू का कारोबार भी करो। आलू की खेती के लिए, भारत जैसा बड़ा देश और मिल भी कहाँ सकता था।
कैसे बना आलू परदेसी से देसी
History of Potato details:19वीं शताब्दी तक, आलू पूरे बंगाल और उत्तर भारत की पहाड़ियों में उगाए जाने लगा। कोलीन टेलर सेन ने फूड ऑन द मूव: प्रोसीडिंग्स ऑफ द ऑक्सफोर्ड सिम्पोजियम ऑन फूड एंड कुकरी में अपने लेख इस बात का ज़िक्र लिया कि कैसे आलू ने बंगाली व्यंजनों का स्वरूप ही बदल दिया।
अंग्रेज़ों का मानना था कि भारत में आलू की सफलता को चावल से ज़बरदस्त टक्कर मिलेगी। इसके विपरीत भारतवासियों ने इसे आसानी से स्वीकार कर लिया गया और धीरे धीरे भारत की रेसिपीज़ में आलू को शामिल कर अनुकूलित कर लिया गया। आख़िर भारत का हृदय है ही इतना विशाल की सबको शामिल कर लेता है।
हैरानी की बात यह है कि समोसे पहले आलू के बग़ैर होते थे
Interesting Facts about History of Potato: पंद्रहवीं शताब्दी की एक उल्लेखनीय किताब जिसे निमत्नामा, या बुक ऑफ डिलाइट्स में खिलजी राजघरानों द्वारा पसंद किए जाने वाले समोसे के कई संस्करणों का वर्णन किया गया है और उनमें से एक में भी आलू नहीं था। यानी हैरानी की बात यह है कि समोसे पहले आलू के बग़ैर होते थे। जब नवाब वाजिद अली शाह को कलकत्ता से निर्वासित किया गया था, तब शाही अवधी बिरयानी में बदलाव आया था।
पुराने जमाने की दौलत तो अब रही थी, इसलिए उनके रसोइयों ने अपर्याप्त महँगे मांस की जगह आलू को बिरयानी में शामिल किया। यही प्रसिद्ध कोलकाता-शैली की बिरयानी के लिए अग्रदूत बन गया, जहां पूरे आलू, मांस और मसालों के स्वाद के साथ, पकवान का एक अभिन्न अंग है। भारत के अन्य हिस्सों में भी धीरे धीरे खिचड़ी, पिलाफ और बिरयानी और अन्य व्यंजनों में में आलू शामिल करना शुरू कर दिया।
ब्रिटिश “सभ्यता” मिशन का हिस्सा था आलू
18वीं शताब्दी में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन आलू को नई गति मिली। धक्का पूरी तरह से महान एजेंडे के साथ नहीं आया था और ब्रिटिश “सभ्यता” मिशन का हिस्सा था। स्थानीय सब्जियों की किस्मों को अधिक बेहतर पौधों से बदलने का विचार था। उस समय इंग्लैंड में भी आलू काफी नवीनता थी और ब्रिटिश कंपनी के एजेंट विदेशी भूमि में भी इस नई पाई गई वस्तु के अपने पाक अन्वेषण को जारी रखना चाहते थे।
चूंकि उनका भारत में एक दीर्घकालिक मिशन था, इसलिए आलू उगाना उन्हें आयात करने की तुलना में कहीं अधिक समझ में आता है। इसलिए, पौधों को किसानों को कम कीमत पर दिया गया और समग्र एजेंडा भोग के साथ-साथ दुनिया भर में आलू के कारोबार के लिए वाणिज्य में से एक था।
नाम अनेक मगर पूरे भारत में लोकप्रिय हैं आलू जी
आलू, बटाटा, उरालिकिलंगु, कूक, अलु, उरुलाकिझांगु… भारतीय भाषाओं में आलू का नाम जो भी हो यह सभी व्यंजनों में अपनी सर्वव्यापी उपस्थिति दर्ज करता है। आज की तरीख़ में, भारत में आलू नाश्ते में सबसे लोकप्रिय है चाहें उत्तर भारत के आलू के परांठे हों, पूर्वोत्तर की तीखी आलू करी के साथ पूरियां हों या दक्षिण का नरम आलू की स्टफिंग के साथ मसाला डोसा या फिर ग्रिल्ड चटनी और आलू सैंडविच ही क्यूँ ना हो।
कभी हीरो कभी साइड हीरो
रोज़मर्रा के लंच या डिनर पर एक नज़र डालें तो बिहारी आलू चोखा (हरी मिर्च और प्याज के साथ तड़का हुआ मैश किया हुआ आलू) से लेकर मसालेदार दही आधारित कश्मीरी दम आलू तक या फिर बंगाली आलू पोस्टो (खसखस के पेस्ट में पके आलू), मणिपुरी एरोम्बा (बांस की गोली की चटनी और सूखी मछली के साथ मैश किए हुए आलू) तक; मसालेदार केरल पोटैटो रोस्ट से लेकर सुगंधित महाराष्ट्रीयन बटात्याची भाजी तक, आलू को भारतीय व्यंजनों की मुख्य विशेषताओं में से एक कहना कोई बड़ी बात नहीं है, चाहे वह मुख्य सामग्री के रूप में हो या सहायक भूमिका में।
क्यूँ वर्जित था आलू का उपयोग ?
कहते हैं अपने जातिगत विशेषाधिकारों को बनाए रखने के लिए, ब्राह्मण बाहर से आने वाले सभी भोजन को संदिग्ध मानते थे और इसलिए आलू भी वर्जित थे। हालाँकि समय के साथ, ये मान्यताएँ टूट गईं और हमारे दैनिक आहार में आलू के क्रमिक प्रसार ने इसे धार्मिक उत्सवों के दिनों में भी स्वीकार्य भोजन बना दिया। यह केवल जैन समुदाय के बीच है कि आलू को अभी भी मना किया गया है क्योंकि पौधे का उपभोग करने के लिए उखाड़ना पड़ता है और नष्ट कर दिया जाता है।
अर्थशास्त्र और आलू (Economy and Potato)
कहा जाता है कीमतों में उतार-चढ़ाव या कमी से बेपरवाह बाजारों में आलू की एक आश्वस्त उपस्थिति आशा पैदा करती है। लेकिन इन्फ़्लेशन के समय में, आलू की कीमतों में अगर उछाल हो तो एक नियमित मध्यम वर्ग के घर से लेकर स्ट्रीट फूड विक्रेता और एक अपस्केल रेस्तरां तक, सभी का बजट हिल जाता है।
लाक्डाउन के शुरुआती दिनों में, भारत में लोगों ने थोक में आलू को स्टॉक किया था। महामारी स्टेपल की उनकी सूची में प्राथमिक- चावल, दाल और आलू ही थे। सुपर स्टार आलू सदा साथ निभाने का अपरिवर्तित वादा करता है और निभाता भी है, चाहें समय अच्छा हो या बुरा। आलू जी की जय हो!
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