Usne Kaha Tha_ Hindi Bol Chaal

Common Hindi Muhavre used in daily life: भारत ही का देश है जहां पर मौसम बदलने के लिए भी इंसानों को जिम्मेदार ठहराया जाता है मिसाल के तौर पर ‘शर्मा जी बड़ी ठंड करवा दिया आपने।या फिर मिसाल के तौर पर ‘उसने कहा था श्याम अपना सा मुंह लेकर रह गया’। अब राम हो या श्याम अपना सा मुंह ही तो होगा किसी और का थोड़े हो जाएगा। लेकिन बस कहने का तरीक़ा है।

अपनी हिंदी भाषा में कई ऐसे अनूठे मुहावरे ( Weird Common Hindi Muhavre), कथन या फिर आम बोलचाल के  उदाहरण मिल जाएंगे जो कमाल के हैं। चलिए हिंदी में आम बोलचाल के मज़ेदार उदाहरण के बारे में चर्चा करते हैं। 

Common Hindi Muhavre

खून खौलना 

खून खोलने वाला कथन हमने आपने अक्सर सुना सुना होगा कि ‘यार उसे देखकर ना मेरा खून खौल जाता है’। खून ना  हुआ पतीले पर चढ़ी की चाय हो गई, और यह भाई साहब या बहन जी जिन्हें ग़ुस्सा आ रहा है वह जैसे भभकता हुआ गैस का चूल्हा हो गए जनाब। लेकिन वास्तव में ऐसा वाक्य बोलने वाले लोग अक्सर दब्बू शर्मीले और डरपोक किस्म के होते हैं।  वह बोलते तो बड़े जोर शोर से हैं कि इसको देखकर उसको देखकर मेरा खून खौल जाता है लेकिन जब इस तरह का व्यक्तियों के सामने आता है तो उनकी घिग्गी बंध जाती है। 

खून पसीना एक करना

कई दोस्तों को मैंने यह कहते हुए सुना है  ‘मैंने अपनी मंजिल पाने के लिए खून पसीना एक कर दिया लेकिन फिर भी मेरी किस्मत ही खराब है।’ अब इन्हें कौन समझाए कि यही इनकी गलती है, किस्मत खराब होनी ही थी। कहां हो मिस्टर खून मिस्टर ब्लड लाल लाल रंग के कहां पसीना बदरंग और बदबूदार, भाई दोनों का मिलन कैसे हो सकता हैं।दोनो को cultural shock लगना ही था। खून और पसीने को एक करने की मशीन ना बनाकर अपने शरीर के अधने से हिस्से दिमाग को चलाया होता तो शायद  ज़्यादा अच्छा रिज़ल्ट मिल जाता इन महानुभाव को।

अपने पाँवों पर खड़े होना

‘अपने पांव पर खड़े होने’ मुहावरे की असली मज़ाक़ तो श्री बच्चन साहब और किशोर कुमार जी ने फिल्म नमक हलाल में ख़ूब उड़ाई थी, थोड़ा हम भी हांक लेतें हैं, हो सके तो हमें माफ करना। आख़िर बुजुर्ग किस पांव पर खड़े होने की बात करते हैं, हर बच्चा एक दो साल का होते ही अपने पैरों पर खड़े हो जाता है, चलता है, दौड़ता है। फिर क्यूँ ताऊजी टाइप के लोग कहने लगते हैं , ‘बेटे अब अपने पांव पर खड़े हो जाओ। कहां पर खड़े हो जाओ।

दरअसल यह मुहावरा ही बड़ा कंफ्यूजन करता है। बच्चा तो अपने पांव पर कबसे खड़ा है, जूते तभी तो पहनता, बाप की कमाई के स्पोर्ट्स शूज, लेदर शूज, स्नीकर्ज़, अब समझ में नहीं आता कि भैया कौन से पैरों पर खड़े होना है। पता नहीं इंडिया में लोग सीधे-सीधे क्यों नहीं बोल पाते पढ़ाई पूरी हो गई है लल्ला अब नौकरी ढूंढ लो।

घर बसाना

अक्सर हिंदी फ़िल्मों में  सुना गया है और आसपास भी आस पड़ोस में भी यह डाइयलोग सदियों से गूंजता ही रहा है ‘लड़की सयानी हो गई अब इसका घर बसा देना चाहिए, या फिर पढ़ाई हो गई है यह राजू आवारा घूमता रहता है  इसका घर बसा दो रास्ते पर आ जाएगा। भैया जब घर ही बसा दोगे तो रास्ते पर क्यों आएगा घर में नहीं रहेगा लेकिन नहीं यह डाइयलोग बोलना बहुत ज़रूरी है।

लड़की सयानी हो गई है घर बसा दो इसका भी कोई मतलब समझ में नहीं आता अबे घर क्यों बसाले। इस से अच्छा वह सल्लू की फ़्लॉप किसी का भाई किसी की जान ना देख ले या लाल सिंह चड्डा जी पर टाइम वेस्ट ना कर ले, भला घर क्यूँ बसाए।

रात गयी बात गयी

‘अब छोड़ो भी रात गई बात गयी’ यह भी कोई बात हुई? बात को इतने सस्ते खस्ते में हम कैसे जाने दें?  कोई मुश्किल है, कोई प्रॉब्लम है रात बीत जाने से सॉल्व हो जाती है क्या भला? कोई हादसा हो गया किसी का नुकसान हो गया है ऐसे कैसे जाने दे भाई क्यूँकि रात बीत गयी। अब यह ना समझ लीजिएगा कि यही सबसे नकारात्मक,  बेवकूफी भरा, स्टुपिड सामवाद है क्यूँकि इसके भी परदादा, परनाना हमारी आम बोलचाल की भाषा में भरे हुए हैं । 

जान बची सो लाखों पाये लोट के बुद्धु घर को आये 

जान बची तो लाखों पाए लौट के बुद्धू घर को आए,  कोई हमें भी समझाएं जब इतने लाखों कमाए तो कहां छिपाए।मुहावरे वाले कहते हैं जान बची तो लाखों पाए। अगर इसको लोग गम्भीरता से ले लें और सच मान लें अगर लाखों पाए होते तो भाई साहब इनकम टैक्स भी हजारों का भरना पड़ता। इसी चक्कर में इंकम टैक्स बचाने के लिए कई लोग जान गवा देते।

और रही बात लौट के बुद्धू घर को आए की तो जनाब बुद्धू होने में तो बड़ा फायदा है। एक तो जान बच जाती है, लाखों भी पाता है , अगर अक़्ल लगाएगा तो ज़रूर जान से जाएगा। ख़ैर हम क्यूँ इतनी कीमियागिरी कर रहें हैं। कहां इस देश में जान की कीमत लाखों की है,  यहां तो छोटी छोटी रकम के लिए छोटी-छोटी बातों पर लोग जान लेने देने को उतारू हैं। 

हमारी सभी बातें सिर्फ मजे लेने देने के लिए हुई हैं। दरसल  हम भी इन मुहावरों और भाषा के क़ायल हैं। हमारी आम बोलचाल की भाषा में इन मुहावरों, इन कथनों का बहुत मज़ेदार और यादगार योगदान रहा है। हो सकता है कुछ मुहावरे वक्त के साथ, थोड़े पुराने जरूर लगते हैं लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं है कि बात चीत में ज़ाएका बढ़ा देतें है। हिंदी भाषा की जय!

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