USNE KAHA THA MOBILE

How Is Your Smartphone Affecting Your Sleep and health? ये बात सुनने में मज़ाक़ ज़रूर लगेगी लेकिन है बहुत गम्भीर है। दरअसल आजकल का आधुनिक मानव या कहे की हम लोग, अपने फ़ोन से सदैव चिपके रहते हैं। इतने कि शायद हम उसी वक्त सोते हैं जब हमारा फ़ोन चार्ज होता है या फिर ऐसे कहे की हम केवल अपने फ़ोन चार्ज करने के लिए सोते हैं।

हम सारा दिन अपने दिमाग की जानकारी feed करने में बिताते हैं, इसलिए जब इसे बंद करने का समय आता है, तो हमें अपने फोन पर भी यही काम करना चाहिए। कई अध्ययनों में पाया गया है कि सोने से पहले अपने फोन का इस्तेमाल करना आपके संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।

प्राण जाए पर फ़ोन ना जाए!

Smartphone Affecting Your Sleep
Is Your Smartphone Affecting Your Sleep?

फ़ोन से हमारा ये लगाव बड़ा ही अजीबोग़रीब है, मगर यह ऐसी लत है जो बच्चे, बूढ़े, नारी पुरुष हर किसी को लग गई है। सुबह-सुबह हमें जगाता भी फ़ोन है, इस पर इंटरनेट पर ब्राउज़िंग करते करते लोरी के माफिक सुलाता भी फ़ोन है। उठते, बैठते, खाते, पीते, ऑफिस के लिए तैयार होते, ऑफिस पहुँचते, ऑफिस की मीटिंग में, कारोबार में और कार में सबसे ज़रूरी चीज़ फ़ोन हो गई है। यहाँ तक कि आजकल तो अपनी शादी में भी आधुनिक दूल्हा दुल्हन फ़ोन पर लगे हुए दिख जातें हैं। कई बार लोग मज़ाक़ मज़ाक़ में कहते है ‘प्राण जाए पर फ़ोन ना जाए!’ कई लोगों ने इसे सेल्फ़ी युग भी कह डाला है।

80 वर्ष के बुजुर्ग भी हैं मोबाइल के क़ायल

अक्सर हमनें देखा है कि माँ बाप अपने बच्चों को समझाते हैं कि मोबाइल पे ज़्यादा ना लगा रहे करो लेकिन वो खुद ही मोबाइल के चंगुल में फंसे रहते हैं। बुजुर्गों से अक्सर हमने सुना है की वह कहते हैं कि जब से मोबाइल आ गया है परिवार अलग थलग हो गए हैं, लेकिन हैरानी की बात यह है कि बुजुर्ग, यहाँ कि जो 80 वर्ष से ऊपर की आयु के हैं वो भी मोबाइल में बिज़ी देखे गए हैं। अब करें भी तो क्या करें?

बच्चों को हो रही हैं मानसिक परेशानियाँ – Phone Affects Sleep and Health

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बच्चों को फ़ोन की लत से बचाना बेहद ज़रूरी – How is your Phone Affecting your Sleepand health

मोबाइल ही कैमरा है, मोबाइल टीवी है, मोबाइल कैलकुलेटर है, मोबाइल तो खेल का मैदान भी बन गया है। अक्सर हमनें देखा है की बच्चे खेल के मैदान से दूर मोबाइल पे गेमों में मोबाइल पर गेम खेलना ज्यादा पसंद कर रहे हैं। इससे उनका शारीरिक और मानसिक विकास सही तरीके से नहीं हो रहा है।

बच्चे चिड़चिड़े हो रहे हैं। बच्चों को जब माँ बाप से सही तरीके से अटेंशन नहीं मिलता, तो उन्होंने क्रोध की भावना बढ़ जाती है। बच्चों को अक्सर ये भी शिकायत करते सुना है कि माँ बाप हमसे तो कहते हैं कि फ़ोन पर गेम मत खेलो लेकिन खुद तो फ़ोन पे लगे रहते हैं। इस वजह से बच्चों में मानसिक तनाव और मनोविज्ञानिक बीमारियाँ बढ़ गयीं हैं।

नीली रोशनी आपकी आंखों के लिए हानिकारक है

आपके सेल फोन स्क्रीन द्वारा उत्सर्जित नीली रोशनी मेलाटोनिन के उत्पादन को रोकती है, वह हार्मोन जो आपके नींद-जागने के चक्र (उर्फ सर्कैडियन रिदम) को नियंत्रित करता है। इससे अगले दिन सोना और जागना और भी मुश्किल हो जाता है। सर्कैडियन लय नीली रोशनी के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील प्रतीत होती है क्योंकि इसकी तरंग दैर्ध्य कम होती है। अध्ययनों से यह भी पता चलता है कि नीली रोशनी के संपर्क में आने से आपके रेटिना को नुकसान हो सकता है।

Covid 19 के बाद बढ़ गयी मोबाइल-बाज़ी

दरअसल covid 19 के दौरान जो लॉक डाउन लगे, उसके बाद फ़ोन से फ़ोन का इस्तेमाल और भी ज्यादा बढ़ गया है। लोगों को हर जानकारी फ़ोन से मिलने लगी। क्योंकि काफी अरसे तक लॉकडाउन लगे रहे लोग फ़ोन की मदद से ही शॉपिंग करने लगे, अपने घर की सामग्री मँगवाने लगे और यहाँ तक कि डॉक्टर्स से परामर्श भी फ़ोन पर ही होने लगा। इस तरह हम मोबाइल फ़ोन के और भी ज़्यादा ग़ुलाम बनते गए और अब यह सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा।

रात में सतर्कता बढ़ाता है मोबाइल फ़ोन

मान लें कि आपको अभी-अभी एक कड़े शब्दों वाला ईमेल मिला है या आपने कोई फेसबुक पोस्ट देखी है जिससे आप सहमत नहीं हैं। आपके लिए आराम करना और अब सो जाना अधिक कठिन होगा। इस तरह से दिमाग को व्यस्त रखना आपके दिमाग को यह सोचकर धोखा दे सकता है कि उसे जागते रहने की जरूरत है। चूँकि आपने सोने के बजाय जागते हुए ईमेल पढ़ने में अतिरिक्त समय बिताया, अब आप अगले दिन के लिए अधिक थके हुए और कम सतर्क रहने वाले हैं।

यह एक वैश्विक गम्भीर समस्या है – Smart Phone Affecting your Sleep

जिस तरह से इंसान न सिर्फ भारत में बल्कि हर देश में मोबाइल की गिरफ्त में आ रहे हैं इसमें मोबाइल की कोई भी ग़लती नहीं है, ग़लती हम इंसानों की ही है। इसमें बिलकुल भी संशय नहीं होगा, अगर मैं आपसे कहूँ कि हम सब कॉन्शस लेवल पर फ़ोन को ही अपना एक अलग रूप मानने लगे हैं। हम सोते तब हैं जब हमें फ़ोन चार्ज करना होता है। या फिर ऐसा कहे कि हम खुद को चार्ज तभी करते हैं जब हमारा फ़ोन चार्ज हो रहा होता है। ये हास्यप्रद जरूर लग रहा है लेकिन बहुत ही गंभीर समस्या है। देखें आने वाला वक्त हमें मोबाइल के अत्यधिक उपयोग से कैसे बचाता है।

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