Is Politeness dead

विनम्रता और शिष्टाचार पर आँखें खोलने वाली छोटी सी कहानी

Is Politeness Dead? विनम्रता एक महान गुण है! हम शायद इस कथन को अपने बचपन से सुनते पढ़ते आए हैं। मेरे और आपके जैसे शरीफ इंसान ने शायद इस कथन को बहुत गंभीरता से ले लिया। आपके और मेरे जैसे अनगिनत लोग हैं जो हर हालत में अपनी शालीनता बरक़रार रखते हैं। लेकिन अगर हम अपने इर्द गिर्द देखें तो पायेंगे कि आज विनम्रता और शिष्टाचार अतीत की बात हो गई है।

अव्वल तो हमारी कभी किसी से तू तू मैं मैं नहीं होती और कभी ऐसी नौबत आ भी जाए और हमारा नुकसान भी हो जाए लेकिन हम किसी का बुरा नहीं करते। बुरा करना तो छोड़िए हम कभी ऊंची आवाज में किसी से बात करना भी बेहूदगी समझते हैं। हम अपने आप को बहुत सभ्य समझते हैं भले दुनिया कहती है आप सभ्य होंगे तो हों मेरे ठेंगे से (Is Politeness dead?)।

सच्चाई यह है कि सभ्यता और सौम्यता का गुण बचपन से हमारे शरीफ माता-पिता ने हमारे अंदर डाला है। उसका नुकसान हमें रोज कहीं ना कहीं कभी ना कभी उठाना ही पड़ता है।इस बदलते हुए ज़माने में लोग हमारी शराफत सभ्यता और विनम्रता को हमारी कमज़ोरी समझने लग जाते हैं। धीरे धीरे लोग, समाज आपको दबाने लगता है और आप अपनी ही विनम्रता के बोझ तले घुटने लगते हैं। ऐसे में आप स्वयं अपने आप से अपनी विनम्रता पर सवाल उठानें लगते हैं, कि क्या शिष्टाचार और विनम्रता इस जेजे से लुप्त हो गई है (Is Politeness dead?)

Is Politeness dead

Politeness is a dying art in today’s world

आँखें खोल देने वाली छोटी सी कहानी – Is Politeness dead ( A short story)

मैं जानता हूं मैं कि बचपन से आपके अंदर जो आदत डाल दी गई है जो संस्कार डाल दिए गए वह आप रातों-रात बदल नहीं पाएंगे, लेकिन इस छोटी सी कहानी के माध्यम से शायद आपको काफी कुछ समझ में आएगा कि पढ़ने लिखने की बात अलग है लेकिन असल जीवन में विनम्रता का क्या हाल होता है। 

एक आदमी एक मुर्गा खरीद कर लाया। उसे अपना मुर्गा बहुत प्यारा लगता था क्योंकि मुर्गा बड़ा आज्ञाकारी था। अपने मालिक की हर बात सुनता उसे उठने को कहा जाता तो वह उठता उसे बैठने को कहा जाता तो बैठता, कुल मिलाकर जो मालिक कहा करता उसकी हर आज्ञा का पालन मुर्गा करता। मलिक मुर्गे से बहुत खुश था और मुर्गा इस बात पर तारता था कि देखो मेरा मालिक मुझे कितना प्यार करता है। 

मालिक का ईमान डगमगा गया 

एक दिन मालिक ने सोचा बहुत हो गया मुर्गा पालने का शौक, अब इसे पका कर खाया जाए। वह मुर्गे को मारना चाहता था, इसलिए उस ने मुर्गे को मारने का बहाना सोचा और मुर्गे से कहा, “तुम कल से बाँग नहीं दोगे, नहीं तो मै तुम्हें मार डालूँगा। “मुर्गे ने कहा, “ठीक है, सर, जो भी आप चाहते हैं, वैसा ही होगा !”

अगली सुबह क्या हुआ 

मुर्ग़ा मारता ना क्या करता। वह तो विनम्रता और शराफ़त की मूरत था। सुबह , जैसे ही मुर्गे के बाँग का समय हुआ, मालिक ने देखा कि मुर्गा बाँग नहीं दे रहा है, लेकिन हमेशा की तरह, अपने पंख फड़फड़ा रहा है। मालिक ने सोचा बड़ा अज्ञाकारी है यह तो। मालिक को एक दफ़ा मुर्ग़े पर तरस भी आया लेकिन उसे तो मुर्गे को जल्द खा जाने का लालच था। 

मालिक ने आगे क्या किया

मलिक मुर्गी की शराफ़त देख रहा था। एक पल को मन पिघल भी गया। मगर उसने सोचा अमा यार ऐसा जबरदस्त टेस्टी मुर्गा सामने है और तुम लिहाज़ कर रहे हो। छोड़ो तरस वारस इसको सफ़ा चट करते हैं। मालिक ने अगला आदेश जारी किया कि “कल से तुम अपने पंख भी नहीं फड़फड़ाओगे, नहीं तो मैं तुम्हारा वध कर दूँगा”

मुर्ग़ा बेचारा शरीफ़ का शरीफ़ 

अगली सुबह, बाँग के समय, मुर्गे ने आज्ञा का पालन करते हुए अपने पंख नहीं फड़फड़ाए, लेकिन आदत से, मजबूर था, अपनी गर्दन को लंबा किया और उसे उठाया। मालिक ने सोचा यह तो हर आज्ञा का पालन कर रहा है। इसे मारूँ भी तो किस ग़लती का बहाना लगा कर मारूँ। 

मालिक ने परेशान होकर अगला आदेश जारी कर दिया कि कल से गर्दन भी नहीं हिलनी चाहिए।

अगली सुबह क्या हुआ 

अगले दिन मुर्गा चुपचाप मुर्गी बनकर सहमा रहा और कुछ नहीं किया। मुर्ग़े की विनम्रता और मालिक के समुख समर्पण से मालिक भी बौखला गया। मालिक ने सोचा ये तो बात नहीं बनी, इस बार मालिक ने भी कुछ ऐसा सोचा जो वास्तव में मुर्गे के लिए नामुमकिन था।  

मालिक ने कहा कि “कल से तुम्हें अंडे देने होंगे नहीं तो मै तेरा वध कर दूँगा।”

मुर्गे को अपनी मौत साफ दिखाई देने लगी

मालिक की लालसा मुर्ग़े को बख़ूबी समझ में आ रही थी। अब मुर्गे को अपनी मौत साफ दिखाई देने लगी और वह बहुत रोया।

मालिक ने पूछा, “क्या बात है?मौत के डर से रो रहे हो?”

मुर्गे का जवाब बहुत सुंदर और सार्थक था।

मुर्गा कहने लगा:

“नहीं, मै इसलिए रो रहा हूँ कि, अंडे न देने पर मरने से बेहतर है बाँग देकर मरता…

बाँग मेरी पहचान और अस्मिता थी। 

मैंने सब कुछ त्याग दिया और तुम्हारी हर बात मानी , लेकिन जिसका इरादा ही मारने का हो तो उसके आगे समर्पण नहीं संघर्ष करने से ही जान बचाई जा सकती है, जो मैं नहीं कर सका…”

अपने अस्तित्व, अपनी अस्मिता की रक्षा के लिए संघर्ष करना पड़े तो पीछे नहीं हटना चाहिए…!! क्या मुर्ग़े की आँखें बहुत देर से खुली थीं, क्या अब भी कुछ हो सकता है? मुर्गी कर तो पता नहीं लेकिन आपका जरूर हो सकता है। अगर आप अपनी विनम्रता के कारण दुनिया वालों की आगे से ज़रूरत से ज़्यादा दब रहे हैं तो ऐसा हरगिज़ ना करें (Is Politeness Dead)। इस से पहले कि आपकी तहज़ीब को लोग आपकी मजबूरी या कमज़ोरी समझने लगें आप अपने अच्छेपन पर लगाम लगाना सीख लीजिए। 

Moral of the Story (Is Politeness Dead) – इसी लिये किसी ने क्या खूब कहा है :

उनको अगर इज्ज़त दोगे जो है लठ के हकदार,
तो अपनी इज्जत का फालूदा करवाने को हो जाओ तैयार!

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