Kader Khan character Duggal Sahab Story: बॉलीवुड में संवाद अदायगी के बेताज बादशाह कादर ख़ान की बहुत सी खासियत है जो अधिकांश लोग नहीं जानते होंगे। जैसे बौद्धिक प्रतिभा के धनी कादर ख़ान ने भौतिकी विषय में उच्च शिक्षा हासिल की थी। कहाँ जाता है अमिताभ बच्चन और गोविन्दा की सफलता में इनका अच्छा ख़ासा योगदान रहा है। अमिताभ बच्चन से भी लोकप्रियता को लेकर उनका मन भेद रहा। इन सबके अलावा 2004 में रिलीज़ हुई फ़िल्म ‘मुझसे शादी करोगी’ में उनकी दुग्गल साहब की भूमिका की भी खासी चर्चा गाहे-बगाहे होती रहती है। इसी पर कुछ ख़ास जानते हैं।
दुग्गल साहब का किरदार एक रियल लाइफ इंसान से प्रेरित था?
कादर ख़ान साहब ने फिल्म मुझसे शादी करोगी में जो दुग्गल साहब का किरदार निभाया था वो एक रियल लाइफ इंसान से प्रेरित था? इस फिल्म के डायलॉग राइटर रूमी जाफरी ने एक दफा एक इंटरव्यू में खुलासा किया था कि कादर ख़ान का दुग्गल साहब वाला कैरेक्टर एक रिदकू अंकल नाम के शख्स से प्रेरित था।
रिदकू अंकल राहुल रवैल के पिता के मित्र थे
रिदकू अंकल डायरेक्टर राहुल रवैल के पिता एच.एस.रवैल के एक दोस्त थे। उनकी हाईट मात्र ढाई फीट ही थी। और यही इस भूमिका को ख़ास बनाती थी। एच.एस.रवैल की कुछ फिल्मों में रिदकू अंकल दिखाई भी दिए थे जैसे ‘मेरे महबूब’ व ‘महबूब की मेहंदी’ में उन्होंने अभिनय किया था। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक एच.एस.रवैल रिदकू अंकल को अपने भाई जैसा मानते थे और रिदकू अंकल हमेशा उनके घर पर ही रहते थे। जिस दौर में रूमी जाफरी अंजाम फिल्म लिख रहे थे उसी वक्त राहुल रवैल ने रूमी जाफरी से रिदकू अंकल के बारे में एक बड़ी अजीब सी बात बताई थी।
सुबह उठने पर रिदकू अंकल को काफी देर तक कुछ नहीं दिखता था
राहुल ने रूमी को बताया कि रिदकू अंकल जब सुबह सोकर उठते हैं तो कई दफा उन्हें कुछ देर तक दिखता ही नहीं है। कभी-कभी उन्हें कुछ सुनाई भी नहीं देता। रूमी को रिदकू अंकल की वो दिक्कत बड़ी अजीब लगी। साथ ही साथ उन्हें उनका व्यक्तित्व रोचक भी लगा। स्वाभाविक है कि जो भी ऐसा जान पाएगा, उसे पहले तो इस पर हँसी आएगी। लिहाजा ऐसे व्यक्तित्व की भूमिका को बहुमुखी प्रतिभा के धनी कादर ख़ान साहब ही निभा सकते थे। तभी तो उनका ही चयन किया गया।
रिदकू अंकल कादर ख़ान के रूप में यानी दुग्गल साहब पर्दे पर उतरे
रूमी जाफरी ने राहुल रवैल से कहा कि वो किसी दिन इस तरह की स्थितियों वाला कोई कैरेक्टर किसी फिल्म के लिए डेवलप करेंगे। राहुल रवैल ने कहा कि कोई भी इस बात पर यकीन नहीं करेगा कि किसी के साथ ऐसा भी हो सकता है। लेकिन रूमी जाफरी ने कहा कि किसी कॉमेडी फिल्म की कहानी में ऐसा कैरेक्टर फिट हो सकता। है।
आखिरकार जब ‘मुझसे शादी करोगी’ फिल्म के कैरेक्टर्स गढ़े जा रहे थे उस वक्त रूमी जाफरी ने रिदकू अंकल की सिचुएशन से प्रेरित होकर दुग्गल साहब नाम का किरदार तैयार किया जिसे कादर ख़ान साहब ने निभाया। और कादर ख़ान ने अपने जीवंत अभिनय से उस किरदार को लोकप्रिय भी कर दिया। तभी तो आप सभी के समक्ष इस भूमिका पर चर्चा की जा रही है।जिन्होंने भी मुझसे शादी करोगी फिल्म देखे होंगे वह अंकल के रूप में कादर ख़ान के अभिनय से निश्चित रूप से हंस-हंसकर लोटपोट हो गए होंगे। शायद क़दर ख़ान का कोई विकल्प नहीं है जो इस किरदार को उनसे बेहतर निभा पाता।
काबुल में कादर ख़ान का जन्म हुआ था
22 अक्टूबर 1937 को काबुल में कादर ख़ान का जन्म हुआ था। कादर ख़ान जी पर आप जितना जानेंगे उतना ही कम होगा। इसलिए उन्हें हमेशा जीवंत अभिनेता कहा जाता है। कादर ख़ान ने स्वयं अपने बारे में कुछ अहम जानकारी दी थी जैसे अमिताभ बच्चन के साथ कादर ख़ान के काम करने की शुरुआत राकेश कुमार की खून पसीना(1977) और मनमोहन देसाई की परवरिश(1977) से हुई थी। खून पसीना में कादर ख़ान ने डायलॉग्स लिखने के साथ एक्टिंग भी की थी। जबकि परवरिश के सिर्फ डायलॉग्स लिखे थे।
अमिताभ को राजनीति के लिए मना किया था कादर ख़ान ने
कादर ख़ान साहब ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उन्होंने अमिताभ को राजनीति में ना जाने की सलाह दी थी। बकौल कादर ख़ान, राजनीति में जाने का ऐलान करने के बाद अमिताभ बच्चन का बर्ताव बदल गया। कादर ख़ान हमेशा अमिताभ बच्चन को अमित कहा करते थे। लेकिन एक दिन जब कादर ख़ान ने उन्हें अमित कहा तो शायद बच्चन को ऐसा सुनना अच्छा नहीं लगा।
कुछ देर बाद साउथ का एक प्रोड्यसूर उनके पास आया और बोला,”आप सरजी को मिला?” कादर ख़ान ने पूछा,”कौन सरजी?” उस प्रोड्यूसर ने ऐसे रिएक्ट किया मानो उसे कितना तगड़ा झटका लगा हो। वो बोला,”सर जी तुमको नहीं मालूम? अमिताभ बच्चन।” जवाब में कादर ख़ान बोले,”मैं उन्हें अमित कहता हूं। वो मेरे दोस्त हैं।” तब वो प्रोड्यूसर बोला,”नहीं। आप उन्हें हमेशा सरजी बोलना। अमित नहीं बोलना अभी। ही इज़ ए बिग मैन।”
फिर कदर ख़ान और अमिताभ बच्चन के रिश्ते पहले जैसे ना रहे
कादर ख़ान ने उसी इंटरव्यू में बताया कि ठीक तभी अमिताभ बच्चन वहां आए। उन्हें लग रहा था कि बाकियों की तरह मैं भी उन्हें सरजी कहूंगा। लेकिन मैंने उन्हें सरजी नहीं कहा। उस दिन के बाद से हमारी बातचीत बंद हो गई। ना मैंने कभी उनसे बात की। और ना ही उन्होंने मुझसे कभी बात करने की कोशिश की। उस घटना के बाद कादर ख़ान ने अमिताभ के साथ कुछ ख़ास काम भी नहीं किया।
बाद में कादर ख़ान ने साउथ फ़िल्मों का रुख किया।
बाद में कादर ख़ान साउथ इंडस्ट्री की तरफ चले गए और साउथ के हिंदी रीमेक्स के डायलॉग्स लिखने का काम उन्हें मिलने लगा। उन फिल्मों में अधिकतर जितेंद्र हीरो हुआ करते थे।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी कादर खान
अपने बचपन का एक किस्सा बताते हुए कादर ख़ान बताते हैं कि बचपन में उनकी आदत थी कि वो जो भी दिनभर देखते थे उसे शाम को खुद एक्ट करने की कोशिश करते थे। जबकी उस ज़माने में उन्हें पता भी नहीं था कि वो एक दिन फिल्म इंडस्ट्री में काम करेंगे।
यहूदियों का कब्रिस्तान और ड्रामा
उनके घर के पास एक यहूदियों का कब्रिस्तान था। वहां कोई नहीं होता था। वो उसी के पास एक्ट किया करते थे। एक दिन जब कदर ख़ान दिन भर की घटनाओं को एक्ट कर रहे थे, किसी ने उन पर टॉर्च की रोशनी मारी और कदर ख़ान थोड़े सतर्क हो गये। दर्सल टोर्च मारने वाला कोई और नहीं, 40 के दशक के एक सपोर्टिंग एक्टर वो अशरफ खान थे।अशरफ़ ख़ान महबूब खान की फिल्म रोटी में काम कर चुके थे।
अशरफ़ ख़ान से कैसे बढ़ा रिश्ता
इस तरह अशरफ ख़ान से उनकी जान पहचान हुई।अशरफ ख़ान ने कादर ख़ान से पूछा कि ये तुम क्या कर रहे हो। कादर ख़ान ने उन्हें बताया कि जो भी ‘मैं दिन भर देखता हूं वो रोज़ शाम को यहां पर खुद दोहराने की कोशिश करता हूं।’ अशरफ ख़ान ने उनसे पूछा,”ड्रामा में काम करोगे?” उस वक्त कादर ख़ान की उम्र काफी कम थी। उन्हें पता ही नहीं था कि ड्रामा क्या होता है।
अशरफ ख़ान ने उनसे अगले दिन अपने घर आने को कहा। फिर जब कादर ख़ान अशरफ ख़ान के बंगले पर पहुंचे तो अशरफ ख़ान ने उन्हें एक पेज दिया जिस पर कुछ डायलॉग्स लिखे थे। और कहा कि इसे ज़ोर-ज़ोर से पढ़ो। कादर ख़ान ने जब वो डायलॉग्स पढ़े तो अशरफ ख़ान को उनके डायलॉग्स पढ़ने का अंदाज़ बड़ा पसंद आया।
अशरफ़ ख़ान हुए कादर ख़ान के क़ायल
अशरफ ख़ान ने कादर ख़ान को तीन पेज और दिए और वो भी पढ़कर सुनाने को कहा। और आखिरकार अशरफ ख़ान ने कादर ख़ान को अपने एक नाटक में काम करने के लिए सिलेक्ट कर लिया। उस नाटक में कादर ख़ान को छोटे राजकुमार का रोल मिला था। कहां तो कादर ख़ान एक बेहद ग़रीब परिवार में जन्मे थे और कहां अशरफ ख़ान ने उस नाटक में कादर को शाही खानदान का वारिस बना दिया।
ये वो ज़माना था जब कई नाटकों का आयोजन सिनेमाहॉल में मौजूद स्टेज पर ही आयोजित किए जाते थे। उस नाटक में कादर ख़ान की परफॉर्मेंस लोगों को बहुत पसंद आई। एक बुजुर्ग आदमी ने तो कादर को सौ रुपए बतौर ईनाम भी दिए थे। इस तरह नींव पड़ी भारतीय सिनेमा के एक बेहद मल्टीटैलेंडेट एक्टर-राइटर के निर्माण की। जिसे आप और हम कादर ख़ान के नाम से जानते हैं।
कादर ख़ान बेजोड़ थे और रहेंगे
कादर खान ने बतौर खलनायक और कॉमेडियन बहुत ही बेहतरीन रोल निभाए। एक जमाना था जब उनकी गोविंदा के साथ ज़बर्दस्त जोड़ी बनी। कुछ लोगों को कहना यह भी है कि अगर कादर खान ना होते तो गोविंद शायद इतने बड़े लोकप्रिय स्टार ना बनते। ऋषि कपूर की ‘बोल राधा बोल’ में उनका जो कैरेक्टर था उसे कौन भूल सकता है। फिर चाहें ‘साजन’ के दिलदार बाप हों या ‘हसीना मान जाएगी’ के कंजूस पिताजी, कादर ख़ान की बेजोड़ टाइमिंग और हावभाव का कोई मुक़ाबला नहीं था। कादर ख़ान बेजोड़ थे और रहेंगे
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