Javed Akhtar Saher Ludhianvi and Mystery of 200 rupees

Javed Akhtar Sahir Ludhianvi Story: प्रसिद्ध शायर और गीतकार जावेद अख़्तर के मुम्बई में शुरुआती दिन बहुत मुश्किल से गुजर रहे थे। कमरा और काम दोनों नही था, एक स्टूडियो ही था जिसमें वो सो जाया करते थे। संघर्ष के दौर में जब उनके पास सिर्फ 30 रुपये बचे तो उन्होंने वर्सोवा के 7 बंगले में रहने वाले साहिर लुधियानवी से मिलने का समय माँगा और मिलने पहुँच गए। फिर ऐसा क्या दोनों के बीच ऐसा क्या हुआ जिसे बॉलीवुड जावेद अख़्तर साहिर लुधियानवी और 200 रुपये का रहस्य कहता है

साहिर साहब ने 200 रूपए की सहायता की – Mystery of 200 Rupees between Javed Akhtar Sahir Ludhianvi

 साहिर साहब को जावेद अख्तर अपने फैमिली बैकग्राउंड की वजह से पहले से जानते थे। जीवन संघर्ष में अवसाद से घिरे जावेद अख्तर ने नाश्ते की मेज पर साहिर से कहा कि अगर वो उन्हें कहीं काम दिला दें तो बहुत एहसान होगा। साहिर साहब, जावेद अख्तर को अक्सर नौजवान कहते थे। कुछ देर तक साहिर सोचते रहे फिर बोले- ज़रूर नौजवान, फ़कीर देखेगा तुम्हारे लिए क्या कर सकता है। अचानक साहिर साहब उठकर अपने ड्राइंग रूम से सटे बेड रूम में चले गए और वहाँ से जावेद अख्तर को आवाज़ दी। जावेद साहब अंदर गए तो साहिर साहब बोले- फिलहाल ये ले लो, फिर देखते हैं क्या हो सकता है। 

मेज़ पर दो सौ रूपए रखे थे

 साहिर साहब के कहे अनुसार जावेद अख़्तर ने देखा तो मेज़ पर दो सौ रुपए रखे हुए थे। जावेद साहब जरूरतमंद थे इसलिए थोड़ी ना नुकुर के बाद पैसे ले लिए। साहिर साहब ने पैसे देते वक्त जावेद से न नजरे मिलाई और न ही कुछ कहा। पैसे की मदद करने के ऐसे दिल खोल भाव से साहिर साहब की नेकनीयती साफ़ झलक रही थी।

जब जावेद के दिन सुधरे तो 200 रूपये वापिस करने को बेचैन हो उठे 

Javed Akhtar Saher Ludhianvi
The strange mystery of 200 Rupees between Javed Akhtar Sahir Ludhianvi

वक़्त बदला तो जावेद अख्तर के पास पैसे और काम दोनों आ गए और अब वो और साहिर साहब एक साथ फ़िल्म में लिखने लगे। त्रिशूल, दीवार और काला पत्थर जैसी फिल्मों में कहानी सलीम-जावेद की थी तो गाने साहिर साहब के। इस दौरान जावेद अख्तर अक्सर शरारत में साहिर से कहते- साहिर साब, आपके वो दौ सौ रुपए मेरे पास हैं, दे भी सकता हूं लेकिन अभी दूंगा नहीं। जावेद के मन में 200 रूपए वापिस करने की तड़प थी। वो इस तरह की साहिर साहब की नेकनीयत से भरी मदद को खुदा का वरदान ज्यादा समझते थे क्योंकि इसी मदद से उनका जीवन खुशहाली की ओर चल पड़ा था।

इस तरह शुरू हुआ नीयत और नेक नीयत के बीच नियत का खेल

25 अक्टूबर 1980 की देर शाम का वक्त था जब जावेद साहब के पास साहिर के फैमिली डॉक्टर डॉ. कपूर का कॉल आया। उन्होंने बताया कि साहिर लुधियानवी नहीं रहे। हार्ट अटैक हुआ था। जावेद अख़्तर जितनी जल्दी हो सकता था, उनके घर पहुंचे तो देखा कि उर्दू शायरी का सबसे करिश्माई सितारा एक सफेद चादर में लिपटा हुआ था। अगले दिन जूहू क़ब्रिस्तान में साहिर को दफनाने का इंतज़ाम किया गया। साहिर को पूरे मुस्लिम रस्म-ओ-रवायत के साथ दफ़्न किया गया। फ़िल्म इंडस्ट्री के तमाम बड़े शख्स आये थे। 

साहिर के आखिरी वक्त कब्रिस्तान में नियत के खेल से हुए सभी रूबरू

जावेद साहब भी जूहू क़ब्रिस्तान से अब बाहर निकलकर अपनी कार में बैठने ही वाले थे कि उन्हें किसी ने आवाज़ दी। जावेद अख्तर ने पलट कर देखा तो साहिर साहब के एक दोस्त अशफाक़ साहब थे। अशफाक साहब नाइट सूट में ही थे। अशफाक़ उस वक्त की एक बेहतरीन राइटर वाहिदा तबस्सुम के शौहर थे।

शायद उन्हें सुबह-सुबह ही साहिर साहब के इंतकाल की ख़बर मिली थी और वो वैसे ही घर से निकल आए थे। उन्होंने आते ही जावेद साहब से कहा- आपके पास कुछ पैसे पड़े हैं क्या? वो क़ब्र बनाने वाले को देने हैं, मैं तो जल्दबाज़ी में ऐसे ही आ गया। जावेद साहब ने पूछा- हाँ-हाँ कितने रुपए देने हैं?

अशफ़ाक़ बोले – दो सौ रुपए…

क्यों आप भी हैरत में पड़ गये ना? जीवन के कई रहस्य कभी नहीं सुलझते। शायद उन्हें सुलझाने भी नहीं चाहिए। इन रहस्यों से बस जीवन का असली सत्य जान लेना चाहिए।

Read more: मोहम्मद रफ़ी: बेजोड़ गायक, महान इंसान

Follow us on Facebook for more such untold Javed Akhtar Sahir Ludhianvi Facts.

Written by

Sharad Mishra

वरिष्ठ पत्रकार