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Udit Narayan vs Kumar Sanu: 90 के दशक में उदित नारायण अपनी गायकी से चाहनेवालों का ख़ूब मन मोह रहे थे। इन सब सुर्ख़ियों और सफलताओं के बीच 1990 में फ़िल्म आशिक़ी आई और साथ ही कुमार सानू की आवाज़ में भी धूम मचा दी थी। उदित ने ख़ुद एक इंटरव्यू में कहा है कि मन में तो आता था कि कहीं कोई अच्छा गाना हाथ से ना निकल जाए क्योंकि कुमार सानू ही दिलों पर राज़ कर रहे थे। यानी कि डर फ़िल्म से चमके उदित अब ख़ुद डर रहे थे।
उदित का कुमार सानू का डर जब यक़ीन में बदलने वाला था
और फिर एक ऐसा ही डर यकीन में बदलने वाला था जब यश-राज बैनर एक नई फ़िल्म बना रहा था। फ़िल्म का नाम था ‘दिल तो पागल है’ और यश चोपड़ा की इस फिल्म के गीतों को गाने के लिए पहली पसंद थी उदित नारायण। बहुत-बहुत बड़ी थी और उदित को प्रसन्नता आपसे भी थी कि यश चोपड़ा जैसे दिग्गज इस फिल्म के लिए उनके द्वारा गीत गवाना चाह रहे थे, लेकिन एक ऐसी परेशानी थी जिसे उदित नारायण को उलझन में डाल दिया। दरअसल निर्धारित वक़्त पर गीतों की रिकॉर्डिंग पर उदित नारायण पहुँच ही नहीं सकते थे।
यश चोपड़ा की नई फ़िल्म के लिए उदित नारायण थे पहली पसंद
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1990 के सुनहरे दौर में उदित नारायण पर्दे पर हर बड़े हीरो शाहरुख, आमिर, सनी देओल, गोविंदा, अक्षय कुमार, अनिल कपूर इनकी आवाज बन रहे थे। जब ऊपर वाला देता है तो छप्पर फाड़कर देता है। दुनिया भर में उदित नारायण के शोज़ भी धड़ल्ले से चल रहे थे। इसी दौरान यश चोपडा साहब ने अपनी फ़िल्म प्लैन की ‘दिल तो पागल है’। यश चोपडा साहब की फ़िल्म उनकी ज़्यादातर फिल्मों की ही तरह एक म्यूजिकल म्यूसिकल फ़िल्म थी। उत्तम सिंह जी उस फ़िल्म में संगीत दे रहे थे और आनंद बख्शी साहब ने गीत लिखे थे। इसके गीतों के लिए यश चोपडा साहब ने उदित नारायण को बुलाने का फैसला किया।
कौन सी बात उदित नारायण को बेचैन कर गई
लेकिन दुखद बात यह थी कि जिस दिन पहले गीत की रिकॉर्डिंग तय हुई उस दिन नारायण अपने अमेरिका टूर पर थे। उनके पीछे ही उदित के घर पर यश चोपडा का फ़ोन आया मगर उदित तो मौजूद ही नहीं थे। बाद में जब शाम को उदित ने अपने घर हालचाल पूछने के लिए फ़ोन किया तो मालूम हुआ कि यश साहब का फ़ोन आया था। अब उदित के दिमाग़ में तो खलबली मच गई।शायद कुमार सानू का ज़बर्दस्त दौर चल रहा था और इस बात का डर भी उदित नारायण को बेचैन कर रहा था कि कहीं यह गाने उनके हाथ से ना निकल जायें।
उदित ने यश जी से संपर्क किया मगर लगता था बहुत देर हो गयी थी
आओ देखा ना ताओ, उदित नारायण फौरन यश चोपड़ा को फोन मिलाया। चोपडा ने पूछा कि उदित भाई आजकल कहाँ हो? यहाँ फ़िल्म के गीतों की रिकॉर्डिंग करनी है, शाहरुख की डेट्स मिली हुई है और गाने बहुत जरूरी हैं। उदित ने बताया कि जिस दिन रिकॉर्डिंग रखी गई है उस दिन तो उनका ज़रूरी शो है। अब यश चोपडा जैसे महान निर्देशक और इंसान सारी बात समझते तो थे, लेकिन उनकी भी फ़िल्म का सवाल था। चोपड़ा साहब ने फ़ोन रख दिया। उदित को जब मालूम हुआ तो लगा शायद बहुत देर हो गयी है।
उदित यूँ तो अमरीका में थे मगर उनका दिल मुंबई में था
उदित ने इस घटना के बारे में बताया “मैं शोज़ तो कर रहा था, लेकिन दिल मेरा, वहाँ मुंबई में था, कि इतनी बड़ी फ़िल्म है, इतना बड़ा बैनर है, इतना अच्छा मौका कहीं हाथ से निकल गया तो क्या होगा?” इसके बाद बेचैन उदित अमेरिका से लगातार यश साहब को महबूब स्टूडियो में फ़ोन करते क्योंकि इतना मालूम था कि गीतों की रेकार्डिंग वहाँ हो रही है, बस हालचाल पूछते और फिर झिझक कर कहते सर गीत मेरे लिए ज़रूर रखियेगा।
पामेला चोपड़ा ने मदद करने की कोशिश की मगर…
जैसा कि आपको मालूम ही होगा कि यह चोपड़ा की पत्नी पामेला चोपड़ा का चोपड़ा साहब की बहुत सी फिल्मों की तरह है इस फिल्म में भी अच्छा ख़ासा कॉन्ट्रिब्यूशन था। पामेला चोपड़ा चुपचाप उदित नारायण की लगन को देख कर क़ायल हो गईं। उन्होंने यश जी से कहा कि लड़का कितना होनहार है, वहा है फिर भी फ़ोन रोज़ करता है। ध्यान इसका आपकी फ़िल्म के गीतों में ही है। यश चोपड़ा ने पामेला की बात ध्यान से सुनिए अनसुनी कर दी यह किसी को नहीं पता था।
वापस लौटने पर उदित के साथ हुआ जैसे एक करिश्मा
एक महीने बाद जब उदित वापस मुंबई लौटे तो मालूम हुआ कि यश चोपडा उदित का इंतजार कर रहे थे। यश जी ने उदित से फ़ोन पर कहा “आजाओ गाने रिकॉर्ड करने है”। उदित एक एकदम उत्तेजित हो गए, फटाफट स्टूडियो पहुँच गए। इस फिल्म के गीतों के लिए जैसे उदित नारायण ही बने थे और उनके ऊपर जैसे जैसे मां सरस्वती का वरदहस्त था। इन गाने के लिए उदित को ज़्यादा संघर्ष नहीं करना पड़ा और सभी गाने दो दो टेक में फाइनल भी होते गए।इस बात पर लता जी ने भी उदित नारायण की ख़ूब तारीफ की थी।
कुमार सानू का डर के ही सहारे उदित नारायण ने कमाल कर दिखाया : Udit Narayan vs Kumar Sanu
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उदित ने सारे गीत बेहद अच्छे गाए हैं और फ़िल्म का टाइटल सॉन्ग भी उदित नारायण के ही के नाम हुआ। इस फिल्म के ज्यादातर गाने उदित नारायण ने ही गए और उनके डर के विपरीत कुमार सानू ने सिर्फ एक ही जीत इस फिल्म में गया है। इसमें एक गीत लता जी के साथ हरिहरन जी ने भी गाया है। यह फ़िल और ख़ासकर के इसके गीत आजतक कितने लोकप्रिय हैं यह बात तो हम सब भली भाँति जानते हैं।
उदित को समझ आ गया कि ईर्षा और भय बेकार हैं
अच्छा ही हुआ कि उदित नारायण का इंतजार यश चोपड़ा ने किया। अगर यह गीत कोई और सिंगर गाते तो शायद कुछ और ही नतीजे सामने आते। लेकिन एक बात तो ज़रूर कहनी पड़ेगी कि इस फिल्म के बाद यकीनन उदित नारायण के मन से कुमार सानू का डर शायद हमेशा के लिए निकल गया होगा। उदित को समझ आ गया कि ईर्षा और भय बेकार हैं, वक़्त से पहले और क़िस्मत ज़्यादा कुछ नहीं मिलता इसीलिए आज दोनों बहुत अच्छे दोस्त हैं और अक्सर अलग-अलग मंचों पर एक साथ एक दूसरे से मज़ाक़ करते हुए भी नजर आते हैं।
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