
Story of Renuka Singh Thakur Cricketer from Himachal Pradesh: हिमाचल की बेटी का कमाल: महिला क्रिकेट वर्ल्ड कप में रेणुका सिंह ठाकुर की सफलता की प्रेरक कहानी
हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले के रोहड़ू तहसील के छोटे से गाँव पारसा में, एक पिता का बरसों पुराना सपना उसकी बेटी ने पूरा किया है। भारत की पहली महिला क्रिकेट वर्ल्ड कप जीत की वास्तुकारों में से एक, तेज गेंदबाज रेणुका सिंह ठाकुर ने अपने दिवंगत पिता केहर सिंह ठाकुर की क्रिकेटिंग आकांक्षाओं को साकार किया। रेणुका के पिता का निधन तब हो गया था जब वह केवल तीन साल की थीं, लेकिन उनका क्रिकेट के प्रति प्रेम रेणुका के जरिए आज भी जीवित है।
क्रिकेट के प्रति गहरा प्रेम रखने वाले केहर सिंह की इच्छा थी कि उनके बच्चों में से कोई एक इस खेल को गंभीरता से अपनाए। खेल के प्रति उनका समर्पण इतना अधिक था कि उन्होंने अपने बड़े बेटे का नाम 90 के दशक के मशहूर क्रिकेटर विनोद कांबली के नाम पर ‘विनोद ठाकुर’ रखा था।
बचपन और क्रिकेट का जुनून
वर्ल्ड कप फाइनल में भारत ने दक्षिण अफ्रीका को 52 रनों से हराकर पहली बार यह खिताब जीता। इस ऐतिहासिक जीत में रेणुका सिंह ठाकुर भारतीय टीम की ओपनिंग गेंदबाज थीं और उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। रेणुका की मां, सुनीता ठाकुर ने याद किया कि कैसे बचपन से ही रेणुका का खेल के प्रति जुनून था।
सुनीता ने बताया, “रेणुका हमेशा से क्रिकेट को लेकर जुनूनी थी और बचपन से ही लड़कों के साथ खेलती थी। छोटी लड़की होने के बावजूद, वह कपड़े की गेंदें बनाकर सड़क किनारे लकड़ी के बल्ले से खेलती थी। मेरे पति क्रिकेट से प्यार करते थे… मेरी बेटी ने उनका सपना पूरा कर दिया है।”
धर्मशाला अकादमी से वर्ल्ड कप तक का सफर
रोहड़ू की वादियों और गलियों से लेकर विश्व मंच तक रेणुका का सफर तब शुरू हुआ जब उनके मामा, भूपिंदर ठाकुर (जो एक फिजिकल एजुकेशन टीचर हैं) ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें पेशेवर प्रशिक्षण के लिए मार्गदर्शन दिया। भूपिंदर ठाकुर की मदद से ही रेणुका को धर्मशाला क्रिकेट अकादमी में दाखिला मिला। उनकी स्वाभाविक गति और अनुशासन ने कोचों का ध्यान आकर्षित किया, और यहीं से भारतीय राष्ट्रीय टीम तक का उनका सफर शुरू हुआ।

फाइनल से पहले, सुनीता ने फोन पर अपनी बेटी को एक मार्मिक संदेश दिया था: “आज देश के लिए खेलो, अपने लिए नहीं – और वर्ल्ड कप जीतो।” मैच के दौरान उनकी बांह पर अपने दिवंगत पिता के नाम का टैटू था, जो उनके जुनून और पिता के सपने के प्रति उनकी निष्ठा को दर्शाता है।
पहाड़ी राज्य की चुनौतियाँ और अटूट जुनून
हिमाचल प्रदेश, जहाँ से रेणुका सिंह ठाकुर आती हैं, मुख्य रूप से एक पहाड़ी राज्य है। यह अन्य मैदानी राज्यों की तरह विशाल और आधुनिक क्रिकेट प्रशिक्षण सुविधाओं या अकादमियों से वंचित रहा है। सीमित संसाधनों और मुश्किल भौगोलिक परिस्थितियों के कारण, यहाँ के युवाओं के लिए क्रिकेट जैसे पेशेवर खेल में करियर बनाना अक्सर एक दुष्कर चुनौती रही है।


मगर रेणुका सिंह ठाकुर ने यह सिद्ध कर दिया कि जहाँ जुनून और किस्मत का मेल होता है, वहाँ कोई भी भौतिक कारक बाधा नहीं बन सकता। अपने गाँव पारसा से धर्मशाला क्रिकेट अकादमी तक का सफर तय करने में उन्हें सुविधाओं की कमी का सामना करना पड़ा होगा, लेकिन उनकी लगन और तेज गेंदबाजी की स्वाभाविक प्रतिभा ने उन्हें आगे बढ़ने का रास्ता दिखाया। रेणुका ने केवल एक क्रिकेटर नहीं, बल्कि हिमाचल की बेटियों के लिए सपनों को साकार करने का एक जीता-जागता उदाहरण पेश किया है, यह साबित करते हुए कि प्रतिभा और दृढ़ संकल्प को कोई भी पहाड़ी या मैदान रोक नहीं सकता।
क्रिकेट में हिमाचल का योगदान: अन्य प्रसिद्ध सितारे
रेणुका सिंह ठाकुर अकेली ऐसी खिलाड़ी नहीं हैं जिन्होंने क्रिकेट के मानचित्र पर हिमाचल प्रदेश को पहचान दिलाई है। भारतीय क्रिकेट जगत में कई बड़े नाम हैं जिनका संबंध इस पहाड़ी राज्य से रहा है। इनमें सबसे प्रमुख नाम 1983 वर्ल्ड कप विजेता टीम के सदस्य मदन लाल (cricketer Madan Lal) का है, जिनकी पैतृक जड़ें हिमाचल के हमीरपुर जिले में हैं। इसके अलावा, भारत के महानतम कप्तानों में से एक और 1983 वर्ल्ड कप विजेता टीम के लीडर कपिल देव (Cricketer Kapil Dev), जिनका जन्म चंडीगढ़ में हुआ, भी इस क्षेत्र से गहरा जुड़ाव रखते हैं।कपिल देव शिमला के पसिद्ध विद्यालय सेंट एडवर्डस् स्कूल (St. Edwards School Shimla) के छात्र रहें हैं।
महिला क्रिकेट की बात करें तो, रेणुका सिंह ठाकुर से पहले विकेटकीपर-बल्लेबाज सुषमा वर्मा भी हिमाचल प्रदेश की प्रमुख खिलाड़ी हैं, जिन्होंने भारतीय राष्ट्रीय टीम में राज्य का प्रतिनिधित्व किया है। इन सभी खिलाड़ियों ने यह साबित किया है कि सीमित सुविधाओं के बावजूद, यह राज्य क्रिकेट को लगातार उत्कृष्ट प्रतिभाएं प्रदान कर रहा है।
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