
‘प्रेम’ के आवरण से बाहर भी सलमान ख़ान का चला था जादू (Prem role vs action role)
Salman Khan best non romantic movies: भारतीय सिनेमा में सलमान खान एक ऐसे सुपरस्टार हैं जिनका नाम सुनते ही दर्शकों के मन में एक विशेष छवि बनती है: ‘प्रेम’ की छवि। यह नाम उन्हें सूरज बड़जात्या की पारिवारिक और रोमांटिक फिल्मों से विरासत में मिला है। चाहे वह ‘मैंने प्यार किया’ का भोलापन हो या ‘हम आपके हैं कौन’ का पारिवारिक प्रेम, या यहाँ तक कि उनकी एक्शन मसाला फिल्मों में भी एक आकर्षक प्रेम कहानी का उप-प्लॉट हमेशा मौजूद रहता है। दर्शकों ने उन्हें चुलबुले, रोमांटिक और एक्शन-हीरो के रूप में स्वीकार किया है, जहाँ प्रेम और रोमांस अक्सर स्क्रिप्ट का केंद्रीय विषय होता है।
लेकिन, बॉलीवुड का इतिहास गवाह है कि खान ने अपने करियर में कई ऐसी फिल्मों को चुना है जहाँ कहानी का मुख्य आधार दिल का मामला नहीं, बल्कि कर्तव्य, इंसानियत, खेल या सामाजिक संघर्ष रहा है। ये वो फिल्में हैं जो उन्हें ‘प्रेम’ के लेबल से परे एक अभिनेता के रूप में स्थापित करती हैं। यह लेख उन्हीं चुनिंदा फिल्मों पर केंद्रित है, जहाँ रोमांस थीम नहीं बल्कि केवल एक पृष्ठभूमि या पूरी तरह से अनुपस्थित विषय है (Salman Khan best non romantic movies)।
1. इंसानियत का धर्म: बजरंगी भाईजान (Bajrangi Bhaijaan – 2015)
अगर सलमान खान के करियर की किसी फ़िल्म को ‘रोमांस-मुक्त’ सिनेमा के शिखर पर रखा जा सकता है, तो वह है बजरंगी भाईजान। कबीर खान द्वारा निर्देशित यह फ़िल्म प्रेम की नहीं, बल्कि मानवता, आस्था और सरहद पार दोस्ती की गाथा थी। फ़िल्म का केंद्रीय चरित्र पवन कुमार चतुर्वेदी (बजरंगी) एक ऐसी छोटी बच्ची मुन्नी (शाहिदा) को उसके घर पाकिस्तान पहुंचाने का बीड़ा उठाता है जो भारत में कहीं खो गई है।
फ़िल्म में करीना कपूर खान का किरदार ज़रूर है, लेकिन कहानी का मुख्य संघर्ष पवन का मुन्नी को सकुशल घर पहुँचाने का जुनून ही है। उनके रिश्ते में कोई प्रेम त्रिकोण नहीं है, न ही पारंपरिक रोमांटिक गीत हैं। कहानी पवन के धार्मिक विचारों और मुन्नी को सुरक्षित पहुँचाने के मानवीय कर्तव्य के बीच के द्वंद्व पर टिकी है। यह फ़िल्म दिखाती है कि प्रेम से ऊपर इंसानियत का धर्म होता है, और इस गैर-रोमांटिक विषय ने बॉक्स ऑफिस पर इतिहास रच दिया। यह साबित करता है कि सलमान का स्टारडम बिना किसी प्रेम कहानी के भी दर्शकों को सिनेमाघरों तक खींच सकता है।


2. खेल, जुनून और वापसी: सुल्तान (Sultan – 2016
अली अब्बास ज़फ़र निर्देशित सुल्तान एक और बेहतरीन उदाहरण है जहाँ प्रेम कहानी उप-प्लॉट के रूप में मौजूद है, लेकिन फ़िल्म का मूल आधार खेल, आत्म-सम्मान और वापसी (रिडेंप्शन) है। हरियाणा के एक पहलवान सुल्तान अली खान की यह कहानी उसकी कुश्ती की यात्रा, पेशेवर हार, अहंकार के पतन और फिर रिंग में वापसी के इर्द-गिर्द घूमती है।
सुल्तान के जीवन में आरफ़ा (अनुष्का शर्मा) ज़रूर आती है, लेकिन उनका प्यार सुल्तान को पहलवान बनने के लिए प्रेरित करता है, यह केवल शुरुआत भर है। इसके बाद कहानी उनकी शादी, करियर की ऊँचाइयों, अहंकार के कारण आई दरार, और सबसे महत्वपूर्ण— प्रो-रेसलिंग में उसकी वापसी पर केंद्रित हो जाती है। फ़िल्म का भावनात्मक केंद्र पिता बनने की त्रासदी और खोई हुई प्रतिष्ठा को वापस पाने की लड़ाई है। दर्शकों ने सलमान को यहाँ एक एक्शन-हीरो या प्रेमी के रूप में नहीं, बल्कि एक हताश, टूट चुके और फिर उठ खड़े होने वाले खिलाड़ी के रूप में देखा। यह फ़िल्म जुनून की जीत का सिनेमा है, प्यार की नहीं।
3. सामाजिक त्रासदी का गहरा रंग: तेरे नाम (Tere Naam – 2003)
सतीश कौशिक द्वारा निर्देशित तेरे नाम एक ऐसी फ़िल्म है जो सलमान ख़ान की रोमांटिक छवि पर एक करारा प्रहार थी। हालांकि फ़िल्म की शुरुआत एक तरफ़ा प्रेम से होती है, लेकिन कहानी जल्द ही एक गहरी सामाजिक त्रासदी में बदल जाती है। यह फ़िल्म राधे मोहन की कहानी है, जो कॉलेज में दादागिरी करता है और एक लड़की (भूमिका चावला) से प्यार कर बैठता है। लेकिन प्यार में सफल होने के बजाय, वह हिंसा और प्रतिशोध के एक चक्र में फँस जाता है, जिसके परिणामस्वरूप उसके सिर में गंभीर चोट लगती है।
इसके बाद फ़िल्म का पूरा ध्यान राधे के मानसिक स्वास्थ्य और पागलपन की ओर जाता है। यह फ़िल्म भारतीय समाज की मानसिक स्वास्थ्य के प्रति उदासीनता, अपराधियों के साथ दुर्व्यवहार और एक व्यक्ति के दुखद पतन को दर्शाती है। यह पारंपरिक रोमांटिक फ़िल्म नहीं है, बल्कि एक अँधेरी, यथार्थवादी और त्रासद कहानी है, जहाँ प्रेम अंततः विनाश का कारण बनता है। यह फ़िल्म सलमान खान की अभिनय क्षमता का प्रदर्शन थी, जिसमें रोमांस की जगह गहरा भावनात्मक दर्द था।
4. राष्ट्रवाद और मिशन: टाइगर/एक था टाइगर और टाइगर ज़िंदा है (Tiger Franchise – 2012, 2017)
रोमांस के मामले में, ‘टाइगर’ सीरीज़ के बारे में बहस हो सकती है, क्योंकि यह एक भारतीय जासूस (टाइगर) और एक पाकिस्तानी जासूस (ज़ोया) की प्रेम कहानी से शुरू होती है। हालाँकि, इन फिल्मों का मूल संघर्ष और मुख्य प्लॉट ‘प्रेम’ नहीं, बल्कि ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ और ‘मिशन’ है।
एक था टाइगर में, दोनों को अपने देशों के लिए जासूसी छोड़नी पड़ती है। लेकिन टाइगर ज़िंदा है पूरी तरह से एक रेस्क्यू मिशन पर आधारित है। कहानी का केंद्र इराक में बंधक बनाई गई भारतीय और पाकिस्तानी नर्सों को बचाना है। टाइगर और ज़ोया का रिश्ता यहाँ उनके मिशन को पूरा करने में सहयोग का जरिया बनता है, न कि कहानी का मुख्य उद्देश्य। ये फिल्में शुद्ध जासूसी थ्रिलर हैं, जिनमें राष्ट्रवाद, एक्शन और उच्च दाँव पर लगे मिशन ही कहानी को आगे बढ़ाते हैं।


5. एक्शन और पुलिस का कर्तव्य: गर्व (Garv: Pride and Honour – 2004)
गर्व एक शुद्ध पुलिस ड्रामा और एक्शन फ़िल्म थी, जहाँ सलमान खान ने पुलिस इंस्पेक्टर अर्जुन रानावत का किरदार निभाया। फ़िल्म का मुख्य विषय पुलिस विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार, न्याय की लड़ाई और एक ईमानदार अधिकारी का अपने कर्तव्य के प्रति समर्पण था। फ़िल्म में प्रेम कहानी लगभग नगण्य थी; इसका फोकस सामाजिक बुराइयों को मिटाने और भ्रष्ट व्यवस्था को चुनौती देने पर था।
यह फ़िल्म उनकी छवि को एक सामाजिक प्रहरी के रूप में स्थापित करती है, जहाँ रोमांस की जगह वर्दी का ‘गर्व’ लेता है।
इसी तरह दबंग सीरीज में भी सलमान का दरोग़ा का चरित्र लोगों ने बहुत पसंद करा। दबंग सीरीज़ में भी सलमान ख़ान का पुलिसिया अन्दाज़ ही मुख्य आकर्षण है और प्रेम का बहुत कम ज़िक्र है।
निष्कर्ष: बहुमुखी प्रतिभा का प्रमाण
बहुत से क्रिटिक्स सलमान को फार्मूला एक्टर भी कहते हैं मगर कई फ़ाइलों में सलमान ने इस बात तो साबित किया कि वह बहुमुखी प्रतिभा के मालिक हैं। सलमान ख़ान ने अपनी फ़िल्मों में अक्सर ‘प्रेम’ को प्राथमिकता दी है, लेकिन बजरंगी भाईजान, सुल्तान, तेरे नाम, और गर्व जैसी फ़िल्में यह सिद्ध करती हैं कि उनकी स्टार पावर केवल रोमांटिक ड्रामा तक सीमित नहीं है। इन फिल्मों में उन्होंने विभिन्न भावनात्मक रंगों को सफलतापूर्वक पर्दे पर उतारा है— चाहे वह मुन्नी के लिए पवन का निस्वार्थ प्रेम हो, या सुल्तान का कुश्ती के प्रति जुनून।
ये फ़िल्में न केवल सलमान खान की बहुमुखी प्रतिभा का प्रमाण हैं, बल्कि यह भी दिखाती हैं कि भारतीय दर्शक अपने प्रिय सुपरस्टार को किसी भी रूप में स्वीकार करने को तैयार हैं, बशर्ते कहानी में दम हो और वह दिल को छू जाए। ‘प्रेम’ के आवरण को हटाकर, उन्होंने साबित किया है कि उनका सिनेमा सिर्फ दिल जोड़ने का नहीं, बल्कि समाज के बड़े मुद्दों और मानवीय मूल्यों पर रोशनी डालने का भी दम रखता है।
सलमान ख़ान की नई फ़िल्म ‘बैटल ऑफ गलवान’ भी केवल प्यार नोहब्बत आशिक़ी से परे देश भक्ति की फ़िल्म लग रही है। खबर यह भी गर्म है कि ‘बैटल ऑफ गलवान’ में अरसों बाद सलमान के साथ अमिताभ बच्चन और गोविन्दा भी नज़र आएँगे। लेकिन एक बात तो है भले ही यह फ़िल्में अलग सब्जेक्ट पर बनी हों परंतु सलमान का ‘प्रेम’ वाला अवतार सबसे मोहक है। आपकी इसपर क्या टिप्पणी है?
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