History of Slippers

History of Slippers: चप्पलों का सबसे पुराना ज़िक्र हमें 4000 ईसा पूर्व के मिस्र से मिलता है, जहाँ पपीरस और चमड़े से बनी चप्पलें राजा-महाराजाओं और पुजारियों द्वारा पहनी जाती थीं।हर दिन हमारे पैरों के नीचे जो चीज़ सबसे पहले आती है, वह है चप्पल। एक सामान्य सी दिखने वाली यह वस्तु न केवल आराम और सुविधा का प्रतीक है, बल्कि इसका इतिहास भी हजारों वर्षों पुराना है। चप्पलें सभ्यता की शुरुआत से लेकर आज के फैशन ट्रेंड तक, हर युग में अपनी उपस्थिति दर्ज कराती रही हैं।

इस लेख में हम जानेंगे कि चप्पलों की शुरुआत कब हुई, कैसे अलग-अलग संस्कृतियों में इसका विकास हुआ, और कैसे आज यह हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी का अहम हिस्सा बन चुकी है।

प्राचीन युग में चप्पलें: आरंभिक संकेत

भारत में भी प्राचीन काल में ‘पदुका’ का चलन था। पदुका लकड़ी से बनी होती थी, जिसमें अंगूठे को पकड़ने के लिए एक छोटा खांचा होता था। ये पदुकाएं मुख्य रूप से संतों, साधुओं, और ब्राह्मणों द्वारा पहनी जाती थीं। यहां तक कि भगवान राम, महर्षि वशिष्ठ और महात्मा बुद्ध के पदचिह्नों के साथ उनकी पदुकाएं भी पूजनीय मानी जाती थीं।

विदेशी इतिहासकारों के अनुसार चप्पलों की शुरुआत का सटीक समय बताना कठिन है, लेकिन पुरातात्विक साक्ष्यों के अनुसार, चप्पलों का अस्तित्व लगभग 4000 ईसा पूर्व से माना जाता है। मिस्र की खुदाइयों में पपीरस और चमड़े से बनी चप्पलों के अवशेष मिले हैं। ये चप्पलें अधिकतर राजा-महाराजाओं और पुजारियों द्वारा पहनी जाती थीं।

चप्पलों का ग्लोबल इतिहास – History of slippers or Chappals

जैसे-जैसे व्यापार और यात्रा का विस्तार हुआ, चप्पलों का रूप और प्रयोग भी विकसित हुआ। मध्य एशिया, चीन, जापान और यूनान में अलग-अलग प्रकार की चप्पलों का चलन था।

  • जापान में ‘गेटा’ और ‘ज़ोरी’ नामक चप्पलें प्रचलित थीं जो लकड़ी से बनाई जाती थीं और इन पर पैर को बांधने के लिए कपड़े की पट्टियाँ होती थीं।
  • चीन में रेशम और बांस की चप्पलें, खासकर अभिजात वर्ग में प्रचलित थीं।
  • ग्रीस और रोम में चमड़े की सैंडलें आम थीं, जिन्हें सिपाही और नागरिक दोनों पहनते थे।

यह बात दिलचस्प है कि चप्पलों का डिज़ाइन न केवल मौसम और भूगोल से प्रभावित था, बल्कि सामाजिक स्थिति और धर्म से भी जुड़ा हुआ था।

भारत में चप्पलों का विकास

भारत में चप्पलें केवल उपयोगिता तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि यह सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान का हिस्सा बन गईं।

  • पौराणिक कथाओं में भी चप्पलों का जिक्र है। रामायण में भरत द्वारा भगवान राम की “खड़ाऊं” को सिंहासन पर रखकर राज्य संचालन करना, चप्पलों को सम्मान का प्रतीक बनाता है।
  • मध्यकाल में, मुगलों के आगमन के साथ नर्म चमड़े की चप्पलों का चलन शुरू हुआ। शाही दरबारों में मखमल, रेशम और कीमती पत्थरों से जड़ी सैंडलें पहनने का चलन था।
  • राजस्थान और पंजाब जैसे क्षेत्रों में “मोजड़ी” और “जूती” का विकास हुआ, जो आज भी सांस्कृतिक पोशाक का अभिन्न हिस्सा हैं।

आधुनिक युग में चप्पलों की क्रांति

बीसवीं सदी में जैसे-जैसे फैशन और जनसंख्या दोनों में विस्तार हुआ, चप्पलों ने एक नए रूप में जगह बनानी शुरू की। अब ये केवल पैर की सुरक्षा का साधन नहीं रहीं, बल्कि स्टाइल स्टेटमेंट बन गईं।

  • रबर की चप्पलें 20वीं सदी के मध्य में आम हो गईं। इनका निर्माण सस्ता, टिकाऊ और आरामदायक होता था, इसीलिए ये मध्यम वर्ग के बीच लोकप्रिय रहीं।
  • हवाई चप्पल, जिसे ‘फ्लिप-फ्लॉप’ भी कहते हैं, हर वर्ग और हर उम्र के लोगों की पहली पसंद बन गई।
  • फैशन इंडस्ट्री में स्लाइडर्स, स्लिप-ऑन, क्रॉक्स और कस्टमाइज़्ड चप्पलें युवाओं की पहचान बन चुकी हैं।

अब चप्पलों को सिर्फ आराम से जोड़कर नहीं देखा जाता, बल्कि इन्हें व्यक्तित्व की पहचान के रूप में देखा जाता है।

इको-फ्रेंडली और डिजिटल युग की चप्पलें

हाल के वर्षों में जैसे-जैसे पर्यावरण जागरूकता बढ़ी है, सस्टेनेबल और इको-फ्रेंडली चप्पलों की मांग में तेजी आई है। अब पुनः उपयोग की जा सकने वाली सामग्री जैसे कॉर्क, जूट, और पुनर्नवीनीकरण प्लास्टिक से भी चप्पलें बनाई जा रही हैं।

साथ ही, ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स ने चप्पलों को घर-घर तक पहुंचा दिया है। अब चप्पलें सिर्फ दुकानों तक सीमित नहीं, बल्कि ऑनलाइन ऑर्डर पर कस्टम डिज़ाइन के साथ उपलब्ध हैं। ब्रांड्स अब चप्पल को एक लाइफस्टाइल आइटम के रूप में पेश कर रहे हैं।

भारतीय ब्रांड्स का उदय

Sustainable Sliders for men from No Strain company are in fashion
Sustainable Sliders for men from the footwear company Nostrain are a vogue

भारत में अब कई स्टार्टअप और ब्रांड्स उभरकर सामने आए हैं जो चप्पल निर्माण को नया आयाम दे रहे हैं। इनमें NoStrain जैसे ब्रांड्स आधुनिक तकनीक और स्टाइल को जोड़कर, उपभोक्ताओं को उच्च गुणवत्ता की चप्पलें उपलब्ध करा रहे हैं, जो न केवल पहनने में आरामदायक हैं बल्कि दिखने में भी आकर्षक हैं।

निष्कर्ष: चप्पलें , संस्कृति, सुविधा और स्टाइल का संगम

चप्पल की कहानी केवल एक फैशन ट्रेंड नहीं है। यह इतिहास, संस्कृति, धर्म, समाज और फैशन का संगम है। यह वह वस्तु है जो राजा से रंक तक, हर किसी के जीवन में मौजूद है।

आज जब आप अपनी चप्पल पहनते हैं, तो याद रखिए, आप सिर्फ एक फुटवियर नहीं पहन रहे, बल्कि हजारों वर्षों की परंपरा और विकास की एक झलक अपने साथ ले जा रहे हैं।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs about History of slippers)

1. भारत में चप्पलों की शुरुआत कब मानी जाती है?
भारत में चप्पलों की शुरुआत प्राचीन काल में ‘पदुका’ के रूप में मानी जाती है, जो लकड़ी की बनी होती थीं।

2. ‘खड़ाऊं’ और चप्पल में क्या अंतर है?
खड़ाऊं लकड़ी की पारंपरिक चप्पल है, जिसमें अंगूठे के लिए खांचा होता है। यह धार्मिक और सांस्कृतिक प्रतीक भी मानी जाती है।

3. क्या आज की चप्पलें पर्यावरण के अनुकूल हैं?
हां, अब कई ब्रांड्स इको-फ्रेंडली मटेरियल से चप्पलें बना रहे हैं जैसे कि जूट, कॉर्क, और रिसाइक्ल की गई सामग्री।4. क्या चप्पलें फैशन स्टेटमेंट बन गई हैं?
बिलकुल, आज चप्पलें केवल सुविधा नहीं बल्कि स्टाइल और व्यक्तित्व का प्रतीक भी बन गई हैं।

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