
Shahid Kapoor’s controversial statements: बॉलीवुड, सपनों और सितारों की नगरी। यहाँ हर दिन एक नई कहानी गढ़ी जाती है, और हर कलाकार अपने तरीके से सुर्खियों में रहने की कोशिश करता है। कुछ अपनी बेहतरीन अदाकारी से दिल जीतते हैं, तो कुछ अजीबोगरीब बयानों से। ऐसा लगता है, आज के दौर में, खबर में बने रहना ही सबसे बड़ी कला है, भले ही उसके लिए आपको कुछ भी अटपटा क्यों न कहना पड़े! अब शाहिद कपूर के अटपटे इस बयान को ही देख लें “यदि मेरे निर्देशक चाहते हैं कि मैं एक अभिनेता के तौर पर गाय या भैंस के साथ काम करूँ, तो मैं इसके लिए तैयार हूँ”।
आजकल सोशल मीडिया का ज़माना है, जहाँ एक पल में कोई हीरो बन जाता है और अगले ही पल ट्रोलिंग का शिकार। और हमारे कुछ अभिनेता इस बात को बखूबी समझते हैं। उन्हें पता है कि ‘नो कमेंट’ बोलने से कोई खबर नहीं बनती, लेकिन ‘मेरा किरदार ही फिल्म का डायरेक्टर है’ कहने से हेडलाइन जरूर बन जाती है। शाहिद पर ट्रॉलर्स का आरोप हैं कि हाल फ़िलहाल में वह अटेंशन पाने के लिए कुछ भी अनाप शनाप बोल देते हैं।
कुछ होते हैं निर्देशक के अभिनेता (Director’s Actors)
बॉलीवुड में हमेशा ऐसे अभिनेता रहे हैं जो निर्देशक के अभिनेता (Director’s Actors) कहलाते हैं। ये वो कलाकार हैं जो स्क्रिप्ट को समझते हैं, अपने निर्देशक की सोच पर भरोसा करते हैं और उस दृष्टि को पर्दे पर उतारने के लिए अपना सब कुछ झोंक देते हैं। अमिताभ बच्चन, दिलीप कुमार, इरफान खान, और आज के दौर के राजकुमार राव जैसे कई महान कलाकार इसी श्रेणी में आते हैं। इनकी एक्टिंग बोलती है, इनके बयान नहीं।
जब कलाकार ‘निर्देशक’ बन बैठते हैं
फिर आते हैं दूसरे तरह के अभिनेता – वे जो खुद को ‘कला का ब्रह्मांड’ समझने लगते हैं। ये वो हैं जो सेट पर ही निर्देशक को डिक्टेट करना शुरू कर देते हैं। ‘मेरा किरदार ऐसा नहीं करेगा’, ‘मुझे इस सीन में डायलॉग नहीं चाहिए, मेरा चेहरा ही सब कह देगा’, या ‘इस सीन में मेरी एंट्री स्लो मोशन में होनी चाहिए, ताकि दर्शक तालियां बजा सकें’ – ऐसे न जाने कितने सुझाव दिए जाते हैं।
निर्देशक को दरकिनार करने लगते हैं बड़े सुपरस्टार
इन्हें लगता है कि निर्देशक सिर्फ उनके ‘विजन’ को अमली जामा पहनाने वाला एक टूल है। ये भूल जाते हैं कि सिनेमा एक सामूहिक प्रयास है और एक जहाज को एक ही कैप्टन चलाता है। जब हर कोई पतवार थामने लगे, तो जहाज का डूबना तय है। वैसे एक ज़माने में आमिर ख़ान भी ख़ुद को Director’s Actor कहते थे लेकिन उसके बाद उन्हें निर्देशक का भक्षक कहलाया जाने लगा।
अमोल गुप्ते और आमिर के बीच हुई तनातनी
निर्देशक अमोल गुप्ते और आमिर के बीच हुई तनातनी कौन भूल सकता है। आमिर खान और अमोल गुप्ते के बीच ‘तारे ज़मीन पर’ फ़िल्म बनाते समय काफ़ी मतभेद हो गए थे, ख़ासकर फ़िल्म के निर्देशन को लेकर। जहाँ शुरुआत में गुप्ते लेखक और क्रिएटिव डायरेक्टर थे, वहीं बाद में ख़ान ने निर्देशन का कार्यभार संभाल लिया, जिससे दोनों के रिश्तों में दरार आ गई। ऐसा ही आशुतोष गोवारिकर और आमिर के बीच लगान में भी मतभेद की खबरें मीडिया में उभरी थीं।
अजय देवगन और अक्षय पर भी दख़लंदाज़ी का आरोप
अजय देवगन और खिलाड़ी अक्षय कुमार पर भी एडिटिंग टेबल पर दूसरे अभिनेताओं के अच्छे सीन कटवाने की खबरें बहुत सुनी गई हैं। सिर्फ़ यह दो ही नहीं, ऐसे और भी बहुत से अभिनेता हैं जिन्हें निर्देशक को निर्देशित करने का भूत चढ़ जाता है। इस वजह से कई एडिटर और निर्दशक इनसे बचते हैं।
अक्सर शाहिद की ‘गंभीर’ बातें भी मज़ाक बन गईं
हाल ही में, ऐसे ही एक वाकये ने सोशल मीडिया पर खूब हलचल मचाई। हमारे एक जाने-माने अभिनेता, शाहिद कपूर, जो कि अपनी बेहतरीन अदाकारी के लिए जाने जाते हैं (कुछ अच्छी फिल्मों में!), ने एक बयान दिया, जिसे शायद उन्होंने बड़ी गंभीरता से कहा होगा, लेकिन सोशल मीडिया पर वह मज़ाक का पात्र बन गया। उनकी टिप्पणियाँ ऐसी थीं कि लोगों को लगा, ‘अरे भाई, कहना क्या चाहते हो?’
‘जब वे मेट’ पर मज़ाक़ में दिया बयान शाहिद को पड़ा भारी (Shahid Kapoor’s controversial statements)

शाहिद ने अपनी ‘जब भी मेट’ फिल्म के बारे में कुछ ऐसा कहा जो दर्शाता था कि उनका किरदार ही पूरी फिल्म का केंद्र बिंदु था और उस किरदार ने ही पूरी फिल्म को ‘निर्देशित’ किया। यानी इम्तियाज़ तो बस मक्खी मार रहे थे। उनके शब्दों का सार कुछ ऐसा था कि, “फिल्म में मेरा किरदार ही असली बॉस था, निर्देशक बस उसे फॉलो कर रहे थे।
वो किरदार इतना ताकतवर था कि उसने सबको अपने इशारों पर नचाया।” अब सोचिए, एक निर्देशक जो दिन-रात एक कर के कहानी गढ़ता है, सेट पर हर छोटी-बड़ी चीज़ का ध्यान रखता है, और अपनी कला को परदे पर उतारता है, उसे यह सुनकर कैसा लगा होगा? (Shahid Kapoor’s controversial statements for director Imtiaz Ali unintentionally)
सोशल मीडिया पर जनता भड़की (Social Media reacts to Shahid Kapoor’s controversial statements)
सोशल मीडिया पर तुरंत मीम्स की बाढ़ आ गई। लोगों ने पूछा, “तो क्या निर्देशक सिर्फ कुर्सी पर बैठे चाय पी रहे थे?”, “क्या शाहिद ने फिल्म खुद ही डायरेक्ट कर ली थी?”, “अगली बार फिल्म के क्रेडिट्स में निर्देशक की जगह शाहिद का किरदार क्यों नहीं?” इस तरह के कमेंट्स ने एक गंभीर बयान को हास्यास्पद बना दिया।
जब करीना के गीत करैक्टर के बारे में दिए बयान पर भड़की पब्लिक
ऐसे ही शाहिद ने जब वे मेट में करीना कपूर के ‘गीत’ किरदार के एक डायलॉग की मज़ाक़ बनाई थी जो उनपर ही भारी पड़ गई। शाहिद ने मज़ाकिया अंदाज़ में अपनी बात रखी और कहा कि गीत, जो कि “अपनी खुद की फेवरेट” है, उसे कोई भी ज़्यादा देर तक बर्दाश्त नहीं कर सकता। (Shahid Kapoor’s controversial statements on Character Geet in Jab we Met)
हालाँकि, इंटरनेट पर लोग इससे खुश नहीं हैं. इस प्यारी फ़िल्म के प्रशंसकों ने सोशल मीडिया पर अपनी निराशा और हताशा व्यक्त की है. कई लोगों को लगा कि शाहिद की टिप्पणी अनावश्यक थी और इसने प्यारे किरदारों से जुड़ी नास्टैल्जिया को कम कर दिया। एक इंस्टाग्राम यूज़र ने लिखा, “कृपया उस आखिरी भ्रम को न मारें जो हमें ज़िंदा रखता है! यह आदित्य की तरफ़ से नहीं आना चाहिए… यह दिल तोड़ देता है…”
अटेंशन पाने का ‘आजमाया’ नुस्खा – Shahid Kapoor’s controversial statements
तो सवाल उठता है, ऐसे बयान क्यों दिए जाते हैं? जवाब शायद उतना सीधा नहीं, जितना लगता है।
- ध्यान आकर्षित करना (Attention Seeking): यह सबसे आम वजह है। जब नई फिल्म आने वाली हो, या आप लंबे समय से सुर्खियों से दूर हों, तो एक विवादित या अटपटा बयान आपको तुरंत हेडलाइन में ले आता है। ट्रोलिंग भी एक तरह की पब्लिसिटी ही है, जो आपको चर्चा में बनाए रखती है।
- खुद को बड़ा दिखाना (Ego Boost): कुछ अभिनेताओं में एक तरह का अहंकार आ जाता है। उन्हें लगता है कि वे फिल्म से बड़े हो गए हैं, और उनके बिना फिल्म चल ही नहीं सकती। ऐसे में वे निर्देशक या सह-कलाकारों को नीचा दिखाकर खुद को श्रेष्ठ दिखाने की कोशिश करते हैं।
- निर्देशक पर हावी होने की कोशिश (Attempt to Dominate): यह सेट पर और सेट के बाहर भी देखा जाता है। जब अभिनेता निर्देशक को ‘मास्टर’ मानने की बजाय ‘कर्मचारी’ समझने लगता है, तो ऐसे बयान सामने आते हैं।
- नासमझी और अनुभवहीनता (Ignorance/Inexperience): कभी-कभी, कलाकार बिना सोचे-समझे बोल देते हैं, या उन्हें पब्लिक में कैसे बात करनी चाहिए, इसका अनुभव नहीं होता। वे नहीं समझते कि उनके बयान का क्या अर्थ निकाला जाएगा।
- टीम वर्क की कमी (Lack of Teamwork Spirit): सिनेमा एक टीम स्पोर्ट है। जब कोई खिलाड़ी सिर्फ अपने परफॉर्मेंस पर ध्यान देता है और टीम की जीत या हार में अपनी भूमिका से बढ़कर कुछ समझने लगता है, तो ऐसे बयान आते हैं।
असली कला कहाँ है?
दुर्भाग्य से, ऐसे बयानों से असली कला का महत्व कम होता है। दर्शकों के रूप में, हम फिल्म में अभिनय देखना चाहते हैं, सेट के पीछे का ड्रामा नहीं। हमें उस निर्देशक का विजन देखना है जिसने एक कहानी को जीवन दिया, उस लेखक की कल्पना देखनी है जिसने शब्दों को बुना, और उस अभिनेता का समर्पण देखना है जिसने एक किरदार को जिया। अफ़सोस होता है जब अभिनेता ख़ुद को ख़ुदा माँ लेते हैं, लेकिन सच तो यह भी है कि हम दर्शक ही तो अभिनेताओं को भगवान बना देते हैं। उम्मीद है, हमारे ‘कला के ब्रह्मांड’ खुद को थोड़ा छोटा करके, फिल्म को बड़ा करने की अहमियत समझेंगे।
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