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Sridevi film Nagina Facts: 1986 की नवंबर के हल्की सर्दी भरे दिन थे जब एक ऋषि कपूर और श्रीदेवी की एक फिल्म रिलीज़ हुई। इस फ़िल्म से लोगों को ज़्यादा उम्मीदें नहीं थी। यूँ तो श्रीदेवी तब तक अपने अभिनय का परिचय तो दे चुकी थीं मगर इतनी बड़ी मेगा स्टार नहीं बन पायीं थीं। ऋषि कपूर का कैरियर भी थोड़ा डगमया सा चल रहा था। उसे ज़माने में VCR आने से सिनेमा घरों का धंदा बुरी तरह चौपट चल रहा था।
VCR पर लोग पाइरेटेड कैसेट से ही काम चला लेते थे। ऐसे में क्या बात थी उस अप्रत्याशित नगीना फ़िल्म में कि दर्शक दोबारा से सिनेमा घरों में खींचे चले आए? सबकी ज़ुबान पर श्रीदेवी का नाम था और चर्चे थे कि कैसे श्रीदेवी ने नगीना फ़िल्म से डूबते हुए बॉलीवुड को बचाया था। (How Sridevi film Nagina revived Bollywood)
80 के दशक में फ़िल्म इंडस्ट्री के थे बुरे हाल
1986 के उस दौर में बहुत कम लोग ही नया सिनेमा देखने पहुँचते थे। पूरा परिवार फिल्म देखने सिनेमा हॉल पहुंचे ऐसा असंभव सा लगने लगा था। फ़िल्म इंडस्ट्री संकट के दौर से गुज़र रही थी। बॉलीवुड के नामचीन निर्देशक निर्माताओं का रुख़ अब टीवी की तरफ़ था। जब बीआर चोपड़ा, रामानन्द सागर जैसे दिग्गज फ़िल्मों की जगह अपना ध्यान और पैसा टीवी पर लगाना शुरू कर दें, बड़े बड़े प्रोड्यूसर्स के ताले लग जायें ऐसा दौर पहले फ़िल्म इंडस्ट्री ने नहीं देखा था।
यहाँ तक कि ‘शोले’ बनाने वाले रमेश सिप्पी भी बड़े पर्दे का मोह छोड़ कर छोटे पर्दे पर ‘बुनियाद’ सीरियल पर अपना सारा दमख़म झोंक दें तो आप समझ ही सकते हैं कि फिल्म इंडस्ट्री कितने बुरे दौर से गुज़र रही थी।
ऋषि कपूर का करियर था ढलान पर
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बड़े-बड़े फिल्में बनेड़ा अपने करियर को दोबारा से टीवी पर स्टार्ट करने के लिए सोचने लगे थे क्योंकि फिल्मों में वह डैम की फिल्मों में अब काम ही नहीं बचा था कुछ ऐसे कलाकार थे जो अभी भी अपनी स्टारडम को कुर्बान करने पर के लिए राजी नहीं थे उनमें से एक कलाकार ऋषि कपूर भी थे। उसे दौर में ऋषि कपूर की भी फिल्में कुछ खास चल नहीं रही थी।
उनकी बड़ी फ़िल्म सागर कुछ वक़्त पहले डूब चुकी थी। अच्छी फ़िल्म होने के बावजूद पिट जाने के बाद फ़िल्म इंडस्ट्री में एक वायंग चलता था ‘जब सागर ही डूब गया तो हमारी नैया कौन पार लगाएगा।
श्रीदेवी तब उतनी बड़ी स्टार नहीं थीं
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श्रीदेवी के चर्चे थे मगर वह घरों की बैठकों में लगे VCR और टीवी तक ही सीमित थे। दुनिया श्रीदेवी को पहचानती तो थी लेकिन उनके टैलेंट को ठीक से पहचान नहीं पायी थी। उस दौर की सभी फ़िल्मों की तरह, इस फिल्म को भी इक्का दुक्का लोग ही पहले देखने गए, लेकिन जब बाहर निकले तो इस फ़िल्म से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने दूसरों को को भी फ़िल्म देखने का अनुग्रह किया। वर्ड ऑफ़ माउथ (Word of mouth) से इस फ़िल्म को अनूठा समर्थन मिला और देखते ही देखते सिनेमा घर खचाखच भरने लगे। फिर जैसे बॉलीवुड को पुनर्जन्म मिला हो, एक बार दोबारा परिवार भर भर के लोग नगीना देखने गए। आख़िर ऐसा क्या था फ़िल्म में।
जब डरने में मज़ा आ रहा था
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इस फिल्म को जब कोई दर्शन देखकर आता वह यही कहता था कि यूँ तो पिक्चर रोमांटिक है लेकिन इसमें एक हॉरर फैक्टर भी है जिसके रहते फिल्में डरने का एक अनोखा ही मज़ा है। आपको यक़ीन नहीं होगा उस ज़माने में लोग अनगिनत बार सिर्फ़ डरने के लिए फ़िल्म देखने जाते। फ़िल्म देखते वक़्त लोग दर के मारे सीट पर पैर रखकर फ़िल्म में भयभीत भी होते और डरने का मज़ा भी लेते। ऐसा होना शायद किसी भी फिल्म के लिए अप्रत्याशित था और यकीनन दोबारा भी ना हो।
अनूठा मसाला था जो कभी दोबारा ना दोहराया जा सके
श्रीदेवी की ख़ूबसूरत मगर चौंका देने वाली आँखें, उनका अचानक नागिन बन जाना और दूसरे ही पाल एक सहमी हुई पत्नी में बदल जाना सबकुछ कमाल कर गया। ऊपर से तांत्रिक के भेस में अमरीश पूरी का ख़तरनाक अन्दाज़ और उनका वह ‘अलख निरंजन’ बोलना दर्शकों को झकझोर देता लेकिन आगे क्या होगा सोचकर वह कुर्सियों से चिपके रहते। ऋषि कपूर ने बेहतरीन अभिनय किया और श्रीदेवी के साथ उनकी जोड़ी खूब जँची। फिर तो इस जोड़ी ने कई और यादगार फ़िल्में दीं मगर नगीना वाली केमिस्ट्री ग़ज़ब की थी। इस फ़िल्म की सफलता में गीत संगीत ने भी किसी एक्टर से कम रोल नहीं निभाया था।
कुछ और अनसुने तथ्य
जब कोई फिल्म बहुत बड़ी हिट हो जाती है तो उसकी महत्वपूर्ण बातें सब जानते हैं लेकिन कई छोटी-मोटी ऐसे भी किससे होते हैं, ऐसे भी बातें होतीं है जिसकी वजह से वह फिल्म इतनी बड़ी हिट होती है।
अजीत ने कैसे रिटायर होने के बाद निभाया रोल
अभिनेता अजीत और हरमेश मल्होत्रा अच्छे दोस्त थे, मल्होत्रा अपनी हर फिल्म में अजीत का इस्तेमाल करते थे। जब नगीना (Sridevi Film Nagina) बनी तो अजीत पहले ही रिटायर हो चुके थे, इसलिए फिल्म में ऋषि कपूर के पिता के तौर पर अजीत की फोटो रखी गई।
श्रीदेवी नहीं जया जया प्रधा थीं हरमेश मल्होत्रा की पहली पसंद
मुख्य भूमिका के लिए जया प्रधा से संपर्क किया गया था लेकिन उन्होंने मना कर दिया क्योंकि वह सांपों से डरती थीं।
जयाप्रदा का नुकसान श्रीदेवी का फायदा बन गया। इसके बाद नगीना 2, निगाहें उन्हीं निर्माता द्वारा बनाई गयीं थीं। तीसरा भाग नग़में शीर्षक से बनाया जाना था, लेकिन इसे बंद कर दिया गया था।
कैसे हुआ था शूट लोकप्रिय गीत ‘मैं तेरी दुश्मन‘
श्रीदेवी ने बताया कि फिल्म की शूटिंग के आखिरी दिन अंतिम डांस सीक्वेंस “मैं तेरी दुश्मन” शूट किया गया था। उस दिन से ठीक पहले, निर्देशक ने सभी को बताया कि उनका काम पूरा हो गया है और कोरियोग्राफर सरोज ख़ान को गाने की शूटिंग के लिए अगले दिन आने के लिए कहा।
सरोज ख़ान अपने अनुशासन के लिए प्रसिद्ध थी। उन्होंने श्रीदेवी को सुबह 7:00 बजे तक सेट पर पहुंचने के लिए कहा। श्रीदेवी भी वक़्त की पाबंद थीं और सुबह 6:30 बजे पहुँच गईं। जब इस गाने की शूटिंग चल रही थी, तकनीशियनों ने सेट को तोड़ दिया और उसे हटाने लगे थे। अंत में सामने केवल एक दीवार बची थी जिसके सामने गाना फिल्माया गया था। लेकिन अगर आप इस गाने को देखेंगे तो किस मजबूरी में इस गाने को शूट किया गया है इसको भाँप नहीं सकते।
श्रीदेवी नगीना (Sridevi Film Nagina) के बाद बन गयीं थीं मेगास्टार
नगीना 1986 की सबसे बड़ी हिट थी। फिल्म की ब्लॉकबस्टर सफलता ने बॉलीवुड की नंबर 1 अभिनेत्री के रूप में श्रीदेवी की स्थिति को और मजबूत कर दिया। नगीना को बॉक्स ऑफिस पर सफलता दिलाने का सारा दारोमदार श्रीदेवी के कंधों पर था और उन्हें ऋषि कपूर पर भारी पड़ते हुए फिल्म का “हीरो” माना गया। यह सब के बावजूद ऋषि कपूर ने कभी भी श्रीदेवी से ईर्ष्या नहीं करी और श्रीदेवी के टैलेंट को पहचाना और उसकी सराहना करी।
इसके बाद चांदनी, चालबाज़ और लम्हे जैसी फ़िल्में आईं, जो इसी तरह श्रीदेवी के इर्द-गिर्द घूमती रहीं और बॉलीवुड की एक सबसे बड़ी फीमेल मेगास्टार के रूप में विख्यात हुईं।
विजू खोटे का कमाल
इस फिल्म में अभिनेता विजू खोटे ने एक छोटी सी भूमिका निभाई थी और पहले भाग में उनका किरदार खत्म हो गया था। हालाँकि, उन्होंने फिल्म में डॉक्टर और एक अन्य गुंडे जैसे कुछ अन्य सहायक कलाकारों के लिए भी डबिंग की थी। फ़िल्म ग़ौर से देखेंगे तो भी इस बात को जान पाना मुश्किल है।
आज श्रीदेवी, ऋषि कपूर, अमरीश पूरी तीनों ही हमारे बीच नहीं हैं लेकिन नगीना की चमक वक़्त के साथ कम नहीं हुई है। हरमेश मल्होत्रा जैसे दिग्गज निर्देशक निर्माता नहीं है जो रोमांस और हॉरर को गीत संगीत के साथ इतनी ख़ूबी से दर्शकों के बीच परोस सकें। माना वह दौर और उस दौर के नगीने कभी वापस नहीं आएँगे लेकिन कभी कभी इन अनमोल नगीनों से धूल पोंछ कर निहारना हम अच्छे फ़िल्म प्रेमियों की आदत भी है और फ़र्ज़ भी। तो जब समय लगे, सोफ़े की सीट पर पैर ऊपर रखकर श्रीदेवी की दिलकश निगाहों से दहशत खा कर तो देखिए।
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