पश्चिम बंगाल के हावड़ा जिले के रहने वाले 20 वर्षीय भारतीय वेटलिफ्टर अचिंत शिउली ने बर्मिंघम राष्ट्रमंडल खेलों में पुरुषों के 73 किग्रा वर्ग का स्वर्ण पदक दो नए गेम्स रिकॉर्ड के साथ अपने नाम कर लिया। लेकिन उनका जीवन संघर्षों से भरा रहा है।
उनका बचपन बेहद संघर्ष में गुजरा। उनके पिता साइकल रिक्शा चला कर जीवन निर्वाह करते थे। एक समय अच्छा भोजन तक उपलब्ध होना अचिंत के परिवार के लिए एक बड़ा समस्या थी।
जब शिउली आठवीं में पढ़ते थे उसी दौरान उनके पिता का निधन हो गया। 2013 में पिता की मृत्यु के बाद उनके परिवार को कई आफ़तों का सामना करना पढ़ा।
उसी समय उनके पॉल्ट्रीफॉर्म पर जंगली लोमड़ी ने हमला कर दिया। ऐसें में परिवार का खर्च चलाने के लिए सबको काम करना पड़ा। ऐसे में महज 12 साल की उम्र में अचिंत को साड़ियों में जरी और कढ़ाई का काम करना पड़ा। वो धीरे-धीरे एक कुशल टेलर बन गए।
अचिंत दुर्घटना वश ही इस खेल में आ गए। सुना है एक दिन वो पतंग उड़ा रहे थे। तभी एक पतंग कटकर स्थानीय जिम में जा गिरी। जिम के अंदर लोगों को व्यायाम और ट्रेनिंग करता देख उन्होंने भी वेटलिफ्टिंग को अपना सपना बना लिया।
दरसल अचिंता के बड़े भाई आलोक वेटलिफ्टर थे। जब तक अचिंत के पिता जीवित तह तो बड़े भाई वेटलिफ्टिंग करते थे। पिता के निधन के बाद आलोक को वेटलिफ्टिंग छोड़नी पड़ी और परिवार के जीवनयापन के लिए सिलाई-कढ़ाई का काम सीखना पड़ा। ऐसे में वेटलिफ्टिंग और सिलाई-कढ़ाई दोनों के गुर उसने अपने भाई से सीखे।
अचिंत सुबह पांच बजे उठकर दौड़ने जाते। फिर लौट कर जिम जाने से पहले घर लौटकर सिलाई का काम करते। उसके उपरांत स्कूल जाते। स्कूल से लौटने के बाद वो वेटलिफ्टिंग का अभ्यास करते। घर लौटकर फिर से सिलाई-कढ़ाई का काम करते। आसान नहीं है चैम्पीयन बनना।